Indranil Bhattacharjee "सैल"

दुनियादारी से ज्यादा राबता कभी न था !
जज्बात के सहारे ये ज़िन्दगी कर ली तमाम !!

अपनी टिप्पणियां और सुझाव देना न भूलिएगा, एक रचनाकार के लिए ये बहुमूल्य हैं ...

Feb 27, 2010

शहर की इमारतें

छुं रही है आसमां को शहर की इमारतें !
और ऊँची होने को बेताब सी इमारतें !!
घर कहाँ है, रिश्ते कहाँ, रह गई बस दीवारें !
इमारतों के साये मे सिमटती इमारतें !!
छुप गए हैं चाँद तारे, आफताब ढक गया !
अब तो बस खिडकियों से झांकती इमारतें !!
अब जगह नहीं है शहर में इंसानों के लिए !
शहर में जगह के लिए झगडती इमारतें !!
तोड़े चाहे मंदिर या मस्जिद "सैल" तोड़ दे !
इमारतों के लिए ही टूटती इमारतें !!
(Copyright reserved by: Indranil Bhattacharjee)

4 comments:

  1. तोड़े चाहे मंदिर या मस्जिद "सैल" तोड़ दे !
    इमारतों के लिए ही टूटती इमारतें !!Bahot khub...

    ReplyDelete
  2. आज शहरी जिंदगी बिलकुल ऐसी ही है जैसा आपने बयां किया है....बहुत खूब

    ReplyDelete
  3. तोड़े चाहे मंदिर या मस्जिद "सैल" तोड़ दे !
    इमारतों के लिए ही टूटती इमारतें !!

    Ultimate ............

    ReplyDelete
  4. छुप गए हैं चाँद तारे, आफताब ढक गया !
    अब तो बस खिडकियों से झांकती इमारतें !!

    waah unchi unchi buildings ke liye khob kaha hai
    aapko padhna achcha laga

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणियां एवं सुझाव बहुमूल्य हैं ...

आप को ये भी पसंद आएगा .....

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...