छुं रही है आसमां को शहर की इमारतें !
और ऊँची होने को बेताब सी इमारतें !!
घर कहाँ है, रिश्ते कहाँ, रह गई बस दीवारें !
इमारतों के साये मे सिमटती इमारतें !!
छुप गए हैं चाँद तारे, आफताब ढक गया !
अब तो बस खिडकियों से झांकती इमारतें !!
अब जगह नहीं है शहर में इंसानों के लिए !
शहर में जगह के लिए झगडती इमारतें !!
तोड़े चाहे मंदिर या मस्जिद "सैल" तोड़ दे !
इमारतों के लिए ही टूटती इमारतें !!
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तोड़े चाहे मंदिर या मस्जिद "सैल" तोड़ दे !
ReplyDeleteइमारतों के लिए ही टूटती इमारतें !!Bahot khub...
आज शहरी जिंदगी बिलकुल ऐसी ही है जैसा आपने बयां किया है....बहुत खूब
ReplyDeleteतोड़े चाहे मंदिर या मस्जिद "सैल" तोड़ दे !
ReplyDeleteइमारतों के लिए ही टूटती इमारतें !!
Ultimate ............
छुप गए हैं चाँद तारे, आफताब ढक गया !
ReplyDeleteअब तो बस खिडकियों से झांकती इमारतें !!
waah unchi unchi buildings ke liye khob kaha hai
aapko padhna achcha laga