Indranil Bhattacharjee "सैल"

दुनियादारी से ज्यादा राबता कभी न था !
जज्बात के सहारे ये ज़िन्दगी कर ली तमाम !!

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Feb 25, 2010

किनारा

लग ना जाए किसी और किनारे से !
बाँध ले तू किश्ती को इस किनारे से !!
आया होगा तोड़कर कोई किनारा !
आ टिका है इसलिए इस किनारे से !!
पार होना है तो पानी में आ जाओ !
क्यूँ चलता है डर डर के तू किनारे से !!
था जो शहर बह गया वो सैलाब में !
अब मिलेगा क्या तुझको इस किनारे से !!
मैंने सुनी है पुकार फिरसे उनकी !
लौट गए थे जो साथी किनारे से !!
था भरोसा जिनपर बहुत मुझको यारों !
वो भी निकल गए छुपकर किनारे से !!
करती है बयां जो देखा है आँखों ने !
आंसूं जो टपका है इनके किनारे से !!
बह जाने दे 'सैल' किश्ती को कहीं भी !!
दिल न लगाना तू अब इस किनारे से !! 
(Copyright reserved by: Indranil Bhattacharjee)

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