Indranil Bhattacharjee "सैल"

दुनियादारी से ज्यादा राबता कभी न था !
जज्बात के सहारे ये ज़िन्दगी कर ली तमाम !!

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Mar 7, 2013

उजाले

1.
सिरहाने चांदनी रखकर
सो गया था मैं,
रातभर ...
सोने नहीं दिया
ख्वाबों के उजाले ।

2.
बहुत उदास होकर
आँखें बंद कर ली मैंने,
जैसे थक गई हो आँख
उजालों के शोर से ।

3.
तुम जो कल
ख्वाबों में आ गई थी,
मेरी अँधेरी रात के बदन पर
लग गए थे
कुछ उजालों के दाग ।

18 comments:

  1. उजाला स्प्शल :)

    पहले वाले में ’ने’ जोड़ कर देखें इन्द्रनील जी, शायद रह गया।

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  2. अँधेरा, ख्वाब और उजाले के समिश्रण से सुंदर छटा है इस प्रस्तुति में.

    काफी समय बाद परन्तु बहुत सुंदर,

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  3. वाह..... बहुत खूब!

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  4. उजाले के यह रंग बहुत अच्छे लगे सर!


    सादर

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  5. दिनांक 11/03/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  6. एहसासों का शब्दमाला

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  7. सार्थक रचना .....
    आप भी पधारो स्वागत है ...
    http://pankajkrsah.blogspot.com

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  8. very nice...शुभकामनायें

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  9. आज कल आप ब्लॉग छोडकर फोटोग्राफी में ही व्यस्त हैं, लेकिन कुछ लिखा पढ़ने का भी इंतज़ार है....

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  10. Amazing blog and very interesting stuff you got here! I definitely learned a lot from reading through some of your earlier posts as well and decided to drop a comment on this one!

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  11. बहुत अच्छी रचना है।
    2अंश की अन्तिम पंक्ति " उजालों के शोर से " में यदि उपयुक्त लगे तो 'शोर' के स्थान पर 'चमक' लिखा जाए तो शायद उपयुक्त होगा

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