Indranil Bhattacharjee "सैल"

दुनियादारी से ज्यादा राबता कभी न था !
जज्बात के सहारे ये ज़िन्दगी कर ली तमाम !!

अपनी टिप्पणियां और सुझाव देना न भूलिएगा, एक रचनाकार के लिए ये बहुमूल्य हैं ...

Sep 27, 2011

तरह तरह के ब्लॉगर - एक समीक्षा !



पिछले पांच सालों से ब्लॉग दुनिया में हूँ | हालाँकि पिछले दो सालों से सक्रीय पोस्टिंग कर रहा हूँ | इस लंबे अंतराल के दौरान कितने ही अलग अलग प्रकार के ब्लॉगर से परिचय हुआ | हर किसी का अपना अलग तरीका, अपना अलग रवैय्या, अलग स्वभाव | जैसे एक समाज में हर तरह के लोग होते हैं, वैसे ही इस ब्लॉग समाज में भी कितने प्रकार के शख्सियत हैं | मैं किसी एक का नाम या ब्लॉग की तरफ इशारा नहीं करना चाहता हूँ, बल्कि पूरा ब्लॉग समाज के बारे में बोल रहा हूँ | किसी को यदि मेरे इस वर्गीकरण में अपना अक्स नज़र आये तो इसे एक आइना समझे | आइना वही दिखाता है जो उसके सामने होता है | आप खूबसूरत हो, तो आइना खूबसूरती दिखायेगा, और आप बदसूरत हो तो बदसूरती |

और हाँ, आप से भी विनती है कि आप भी अपना अनुभव हमसे बांटे ... हो सकता है, मुझसे कुछ गुणीजन छूट गए हों .....

१.       सक्रियतम ब्लॉगर: एक दिन में १० -१२ पोस्ट ठेल देना इनके बांये हाथ का काम है | कम से कम ७-८ ब्लॉग चलाते हैं | हर ब्लॉग में रोज एक पोस्ट देते रहते हैं | इनमे भी दो तरह के ब्लॉगर होते हैं | इनके पोस्ट की गुणबत्ता या तो बहुत अच्छी हो सकती है या फिर भगवान मालिक | वैसे इन लोगों की प्रतिभा को मानना पड़ेगा, पर इनको इतना समय कहाँ से मिलता है यह एक रहस्य है जो मैं आज तक समझ नहीं पाया |
क)     सक्रियतम टिप्पणीकार: इनको केवल १०-१२ पोस्ट लिखकर ही शांति नहीं मिलती | दिन में १००-२०० टिपण्णी भी दे आते हैं और उसके एवज रोज ५०-१०० टिपण्णी भी बटोर लेते हैं |
ख)     टिपण्णी की परवाह नहीं: इनको टिप्पणिओं से कोई लेना देना नहीं होता है | पोस्ट पर टिपण्णी आये न आये, कोई इनके पोस्ट को देखे न देखे, ये रोज नियमित रूप से पोस्टिंग करते जाते हैं | इनको किसीके ब्लॉग पर जाके टिपण्णी भी नहीं करनी होती है |

२.       भटका राहगीर: जिस पथिक को ये नहीं पता हो कि कि ये कहाँ से आये हैं, और कहाँ जाना चाहते हैं, उन्हें आप भटका राहगीर ही कहेंगे न | यानि कि ऐसे शख्सियत को यह नहीं पता होता है कि वो ब्लॉग जगत में क्यूँ आये हैं, क्या करना चाहते हैं, आगे क्या करेंगे | बस दूसरों को ब्लॉग लिखते देखा तो सोच लिए कि हम भी एक ब्लॉग खोल लेते हैं | अब खोल तो लिए पर आगे क्या करना है पता नहीं | क्या लिखना है पता नहीं | बहुत जल्दी ब्लॉग्गिंग का भुत उतर जाता है, और इनका ब्लॉग NASA का कोई परित्यक्त उपग्रह जैसे ब्लॉग-महाकाश में कचड़ा बढ़ाने का काम आता है | मुझे लगता है, हिंदी ब्लॉग जगत के ३०,००० ब्लॉग में से कुछ १५००० इस वर्ग में आते हैं |

३.       पारिवारिक ब्लॉगर: पूरा ब्लोग जगत इनका परिवार है | हर किसीसे ये कोई न कोई पारिवारिक रिश्ता कायम रखते हैं | कोई माँ, कोई पिता, कोई भाई, कोई बहन | और कोई रिश्ता नहीं तो दुश्मनी का रिश्ता तो है ही | बिना कोई रिश्ता कायम किये ये आपसे बात कर नहीं सकते | केवल एक ब्लॉगर का पहचान इनके लिए काफी नहीं | इनको एक साथी ब्लॉगर होने के अलावा भी भाई, बहन, माँ, बाप, सास, ससुर, ननद-भौजाई, कुछ न कुछ होना ही होता है | 

४.       निंदक ब्लॉगर: इन लोगों को तब तक खाना हजम नहीं होता है जब तक ये दुसरे ब्लॉगर की बुराई न कर ले | “इसको लिखना नहीं आता है, उसको टिपण्णी करना नहीं आता है | अरे वो तो चरित्रहीन है | अरे इस ब्लॉगर को कोई काम धंधा नहीं है क्या ? इसने ऐसा क्यूँ लिखा ? उसने वैसा क्यूँ लिखा ? किसीने अपने बारे में लिखा तो गलत | किसीने औरों के बारे में लिखा तो गलत |” कोई कुछ भी लिखे, इन महाशय के नज़र में वो गलत ही ठहराया जायेगा | इनके ब्लॉग में जाइये, दूसरों के सारे दोष (सच या झूठ) आपको मिल जायेंगे | किसीके पोस्ट से ज्यादा ये व्यक्तिगत बातों पे हमला ज्यादा करते हैं |

५.       समालोचक ब्लॉगर: ये जनाब केवल निंदा नहीं करते हैं | जो इनको दिखता है उसे साफ साफ़ लिख देते हैं, आप को बुरा लगे या अच्छा | मुश्किल यह है कि कई बार इनको ठिक से दिखता नहीं है | इनको आप विश्लेशानाक्मक ब्लॉगर के मौसेरे भाई भी कह सकते हैं | केवल अपने ब्लॉग पर ही नहीं, आपके ब्लॉग पर आकर ये आपका पोस्ट कितना बकवास है, और उसमे कितनी गलतियाँ हैं ये बताते रहते हैं | इनका अपना पोस्ट कोई बहुत उच्च कोटि का न भी हो तो भी ये दूसरों के पोस्ट की ऐसी-तैसी करते रहते हैं |

६.       धार्मिक उन्माद: ऐसे ब्लागरों का संख्या कम नहीं है | एक ढूँढो दर्जन मिलेंगे | दूसरों के धर्म की गलतियाँ निकालना इनका परम धर्म है | ऐसा लगता है इनके धर्म में बस यही बात सिखाई जाती है | ये लोग ब्लॉग जगत में केवल धार्मिक उन्माद फ़ैलाने के उद्देश्य से आये हैं | इन लोगों से निपटने का एक ही रास्ता है, कि इनको पूरी तरह से उपेक्षा की जाय | इनकी खिलाफत भी इनको मदद करती है | इनसे जितना दूर रहो उतना अच्छा है | ये लोग खुजली वाले पौधे हैं | इनके पास जाओगे तो तकलीफ ही होगी | इनके ब्लॉग में जाना और टिपण्णी करना भी गुनाह है | इनमें से कई लोग ऐसे हैं जो धार्मिक सद्भावना के आड़ में धार्मिक उन्माद फैलाते हैं | सबसे ज्यादा खतरनाक ऐसे ब्लॉगर हैं | इन्हें पहचानिये और इनसे दूर रहिये |

७.       साहित्यिक ब्लॉगर: इनके ब्लॉग में आपको साहित्य के अलग अलग विधाओं के दर्शन होंगे | इनमें से कोई साहित्य के किसी एक विधा में पारंगत हैं, तो कोई कई विधाओं में लिखते रहते हैं |
क)     उच्च कोटि: इनको साहित्य की पूरी समझ है | ये जो भी लिखते हैं, वह उच्च कोटि का साहित्य होता है | इनको पढके आनंद आता है और कभी कभी इर्ष्या भी हो सकती है, कि ये इतना अच्छा कैसे लिख लेते हैं |
ख)     मध्यम: इनकी रचनाएँ कभी बेहतरीन होती है तो कभी बकवास | अपनी तौर पे ये पूरी कोशिश करते रहते हैं कि और अच्छा लिखे | इनमे सीखने की ललक है |
ग)      निम्न कोटि: इनको साहित्य की कोई समझ नहीं है | ये जो भी लिखते हैं वो कचड़ा पेटी में डालने योग्य हैं | इनमे भी दो प्रकार के होते हैं | प्रथम वो जो जानते हैं कि वो बकवास लिखते हैं, लेकिन फिरभी अपना बैल हांकते रहते हैं | इनको बस ब्लॉग्गिंग करना होता है | गुणबत्ता से इनको कोई लेना-देना नहीं होता है | और दूसरा वो है जिनको ये ग़लतफ़हमी होती है कि वो उच्च कोटि का साहित्यकार है | वैसे भी ब्लॉग जगत में कोई किसीकी ग़लतफ़हमी दूर नहीं करता है | करना संभव भी नहीं है |

८.       रिपोर्टर: ये ब्लॉग को एक अखबार की तरह से चलाते हैं | सब को स्थानीय या फिर प्रादेशिक/राष्ट्रीय ख़बरों से अवगत करवाते हैं | ब्लॉग जगत की खबर जैसे कि जन्मदिन इत्यादि की जानकारी देने वाले ब्लॉगर को भी मैं इसी वर्ग में रखना चाहूँगा | ब्लॉग जगत के लिए ये लोग अत्यंत ज़रूरी प्राणी हैं |

९.       तकनिकी ब्लॉगर: इनके ब्लॉग में आपको तरह तरह के तकनिकी जानकारी मिल जायेगी | मसलन कंप्यूटर के बारे में हो या इन्टरनेट के बारे में, फोन या लैपटॉप के नवीनतम मॉडल के बारे में हो या सॉफ्टवेर के बारे में | ऐसे ब्लॉग में टिपण्णी ना के बराबर आती है |

१०.    विज्ञान ब्लॉगर: ऐसे लोग विज्ञान के प्रचार प्रसार में सक्रिय भूमिका अदा करते हैं | इनके ब्लॉग में आपको तरह तरह के वैज्ञानिक जानकारी मिल जायेगी | ऐसे ब्लॉग में अक्सर टिपण्णी बहुत कम आती है | वैसे भी भारतीय समाज में विज्ञान से किसीको कोई सम्बन्ध नहीं होता है |

११.    सच्चा ब्लॉगर: इस वर्ग में मैं उन लोगों को रखा हूँ जो सही मायने में ब्लॉग्गिंग कर रहे हैं | ब्लॉग्गिंग के शैशावस्था में, ब्लॉग को केवल एक दैनिकी के रूप में इस्तमाल किया जाता था | आज इसके आयाम बहुत फ़ैल चूका है | पर कुछ लोग आज भी हैं जो ब्लॉग को केवल एक दैनिकी के रूप में ही इस्तमाल करते हैं | ब्लॉग जगत का प्राचीन रूप इनके ब्लॉग में देखने को मिलता है |

१२.    घुमक्कड ब्लॉगर: यात्रा विवरणी के बारे में ब्लॉग्गिंग करने वाले इस वर्ग में आते हैं | इनके ब्लॉग से आपको घर बैठे कई जगहों की जानकारी मिल जायेगी | इनका ब्लॉग सुन्दर चित्रों से सुसज्जित होता है |

१३.    बाल ब्लॉगर: आजकल बच्चों के बहुत सारे ब्लॉग देखने को मिलते हैं, ये अलग बात है कि इनमे से ९९ प्रतिशत बच्चों के ब्लॉग उनके माता-पिता ही चलाते हैं | मज़ा तो तब आता है, माता-पिता के लिखे हुए पोस्ट पे बच्चों को इनाम-पुरस्कार इत्यादि दिया जाता है और उनका तारीफ़ किया जात है कि ये छोटा सा ३-४ साल का ब्लॉगर कितना अच्छा ब्लॉग्गिंग करता है (भले ही उस ब्लॉग में उस बच्चे का योगदान शुन्य क्यूँ न हो) |

१४.    बाल साहित्य ब्लॉगर: इन में वो लोग आते हैं, जो बच्चों के ब्लॉग के बारे में लिखते हैं, उनका चर्चा करते हैं, उत्साहित करते हैं | ये लोग बच्चों के लिए बाल-कविता, बाल साहित्य का सृजन भी करते हैं | हमें इनका साथ हमेशा देना ही चाहिए |

१५.    चर्चाकार: ये इस ब्लॉग जगत के स्वनामधन्य और शक्तिशाली ब्लॉगर हैं | इनके रहमो-करम पाने के लिए कई ब्लॉगर हमेशा तत्पर रहते हैं | एक बार आप इनके नज़र में चढ गए कि आपको दो तरह से फायदा हो सकता है | एक तो यह कि आपके ब्लॉग का नियमित चर्चा होता रहेगा, भले ही आप अपने ब्लॉग में कूड़ा-करकट ही क्यूँ न लिखे | और दूसरा, अच्छी जान पहचान हो तो आपको भी चर्चा करने का मौका दिया जायेगा, और आप भी एक शक्तिशाली और प्रभावशाली ब्लॉगर बन सकते हैं | वैसे आप खुद भी एक चर्चा ब्लॉग का आरंभ कर सकते हैं | बहुत जल्दी आप ब्लॉग जगत में रुतबेदार बन सकते हैं |  चर्चाकार तीन प्रकार के होते हैं | एक वो जो वाकई में अच्छे पोस्ट ढूँढकर उनको अपने ब्लॉग में प्रस्तुत करते हैं और उनका समीक्षा करते हैं | दूसरा वो जो अच्छे पोस्ट ढूँढ तो निकालते हैं, और उनका लिंक भी देते हैं पर कोई समीक्षा नहीं करते हैं | और तीसरे प्रकार के चर्चाकार केवल अपने भाई बंधुओं की पोस्ट ही छापते रहते हैं | उनको पोस्ट की गुणबत्ता से कोई लेना देना नहीं होता है | जो उनसे अच्छा सम्बन्ध बनाये रखेगा (यानि कि उनके पोस्ट पे आकर बहुत सारे टिपण्णी करते रहेगा, या फिर उनके जात का होगा, या उनके धर्म का या उनके प्रान्त से होगा), उन्ही का पोस्ट छापा जायेगा चर्चा में | दूसरा कोई श्रेष्ठ साहित्य रचना भी करते रहें, उनका पोस्ट चर्चा में बिलकुल नहीं आएगा |

१६.    टिप्पणीकार: ये लोग शायद ब्लॉग जगत में केवल टिपण्णी करने के लिए आते हैं | इनके लिए उनके अपने ब्लॉग में कुछ पोस्ट करना ज़रूरी नहीं होता है | या लिखते भी हैं तो कुछ एक आध पंक्ति लिख दिए, कि मानो ब्लॉग जगत पे एहसान कर रहे हैं | हर ब्लॉग में जाते हैं और कुछ न कुछ लिख आते हैं | ऐसे ब्लॉगर पोस्ट को पढ़ना भी ज़रूरी नहीं समझते हैं | बिना पोस्ट पढ़े ही ये बहुत सुन्दर, वाह, उम्दा, बेहतरीन, लाजवाब इत्यादि लिखा आते हैं | इनमे से कई तो टिप्पणिओं को कट-पेस्ट कर रखे हैं | जब जैसे ज़रूरत हो वैसी टिपण्णी कापी किये और चिपका दिए | इनमे से कई तो एक साथ चार पांच टिपण्णी कर देते हैं | फिर मजबूरन आपको भी इनके ब्लॉग पे जाकर इनके भले/बुरे एक दो लाइना पोस्ट पे टिपियाना ही पड़ता है |

१७.    अहंकारी ब्लॉगर: थोडा बहुत अहंकार शायद हर किसी में होता है | पर कई ऐसे ब्लॉगर हैं इस ब्लॉग समाज में जिनके हर पोस्ट से उनका अहंकार झलकता है | उनके हर पोस्ट में यही लिखा होता है कि वो कितने अच्छे हैं, कितने सुशिल, शिक्षित, और खानदानी है | और किस तरह पूरा ब्लॉग जगत केवल उन्ही के कंधो पर टिका हुआ है | इनको ग़लतफ़हमी होती है कि यदि ये ब्लॉग जगत से चले गए, तो ब्लॉग जगत की बहुत बड़ी क्षति हो जायेगी | इनकी समझ में इनसे बेहतर तो कोई हो ही नहीं सकता है |

१८.  समीक्षक ब्लॉगर: ये लोग हर बात का विश्लेषण/समीक्षा करते रहते हैं | इनके ब्लॉग पे आकर आपको कई मसलों की अंदरूनी बातें जानने को मिलेगी | कई बार इनके पोस्ट विश्लेषण/समीक्षा के कारण काफी लंबे हो जाते हैं | इतने लंबे पोस्ट पढ़ना आसान नहीं होता है | पर जो भी पढ़ पाता है उसे फायदा ही होता है | ये पोस्ट खुद एक इसी तरह का पोस्ट है |

१९.    राजनैतिक ब्लॉगर: ये लोग ब्लॉग्गिंग के दुनिया में इसलिए आते हैं ताकि वो अपना राजनैतिक भविष्य उज्जवल कर सके | या तो वो किसी पार्टी से जुड़े होते हैं, जिसका गुणगान वो करते रहते हैं, या फिर दूसरी पार्टी की बुराई | यदि ये किसी पार्टी से न भी जुड़े हुए हों तो इनके सगे सम्बन्धियों में कोई न कोई किसी न किसी पार्टी से जुड़े होते हैं | ये तो बस उस पार्टी का समर्थन करते नज़र आते हैं | उस पार्टी के सारे दोष माफ होता है और गुण (हो न हो), बढ़ा चढा कर पेश किया जाता है | भविष्य में कभी राजनैतिक अखाड़े में उतरना हो तो उसका रास्ता साफ़ करते रहते हैं |

२०.    निर्लिप्त ब्लॉगर: इस तरह के ब्लॉगर बहुत दिलचस्पी से ब्लॉग्गिंग तो करते हैं, पर उनको, ब्लॉग जगत में चल रहे बहस बाजी, गुट-बाजी, धार्मिक उन्माद, राजनैतिक दाव-पेंच, यहाँ तक कि टिप्पणिओं से भी कोई लेना देना नहीं होता है | ये अपने रचनात्मकता में मगन, एक के बाद एक सुन्दर पोस्ट डालते जाते हैं | आप इनसे अच्छा सम्बन्ध रखो तो ये आपके ब्लॉग पर आकर टिपण्णी भी दे जाते हैं | इनका सम्बन्ध सभी से अच ही रहता है | देखा जाय तो ये सबसे कम प्रभावशाली ब्लॉगर माने जाते हैं | ब्लॉग जगत के महामहिम चर्चाकार, राजनेता/नेत्री, टिप्पणीकार, इनको पूछते नहीं है | वैसे इनको किसी के पूछने न पूछने से कोई फर्क भी नहीं पड़ता है |

२१.    आशिक ब्लॉगर: खासकर महिलाओं के ब्लॉग में जाकर मीठी मीठी टिपण्णी करना इनका दैनन्दिनी है | इस काम में इनको महारत हासिल है | इनके टिप्पणिओं से साफ़ पता चलता है, कि ये पोस्ट पढते भी नहीं हैं, बस महिलाओं को मधुर संगीत सुनाने में विश्वास रखते हैं | आश्चर्य की बात तो यह है, कि कई महिलाओं को यह लगता है कि यह उनके ब्लॉग के नियमित और गंभीर पाठक हैं | धीरे धीर ये उस महिला से व्यक्तिगत तौर पे सम्बन्ध बनाने की कोशिश करना शुरू कर देते हैं | आप इनका मंशा ताड़ गए तो बच गए | और आप को ये अपना करीबी दोस्त लगने लगे, तो फिर आपकी खैर नहीं | वैसे, ये जितनी जल्दी आपसे अंतरंगता बढ़ाते हैं, उतनी ही जल्दी रूप भी बदलते हैं | यदि आपने इनको घास नहीं डाला तो अचानक इनका रूप बदल जाता है, और हर ब्लॉग पे जाके ये आपकी बुराई करते नहीं थकते |

२२.    हुनरमंद ब्लॉगर: कई ऐसे लोग हैं जो अपने ब्लॉग पे अपना हुनर दिखाते रहते हैं | इनमे कई लोग फोटोग्राफी का शौक रखने वाले होते हैं, अपना लिया हुआ फोटो चिपकाते रहते हैं | कोई खुद का बनाया हुआ चित्र, कलाकृति इत्यादि दिखाते हैं | कोई अपनी आवाज़ में गाया हुआ गाना सुनाता है |

२३.   सिनेमा सम्बन्धी ब्लॉगर: कई ब्लॉगर ऐसे हैं जो बॉलीवुड या होलीवूड से सम्बंधित पोस्ट डालते रहते हैं | इनके ब्लॉग पर जाकर आपको सिनेमा के बारे में दिलचस्प खबरें, गानों के लिंक इत्यादि मिलेंगे | इनमे से कई ब्लॉगर, आपको लिंक के अलावा ज़रूरी जानकारी भी देते रहते हैं | मेरा अपना एक ब्लॉग इस वर्ग में आता है (Copycats) |

तो यह तो था ब्लॉग जगत का वर्गीकरण, जितना मुझे समझ में आया | मैं इनमे से किस वर्ग में आता हूँ यह तो मेरे ब्लॉग के पाठक ही बताएँगे | आप खुदको कहाँ पाते हैं ? यदि आप इस वर्गीकरण में कुछ और योगदान करना चाहते हैं तो आप का स्वागत है |
(व्याकरण की गलतियाँ माफ कर दीजियेगा)

Sep 20, 2011

तीन क्षणिकाएं ... विभीषण !

बहुत दिन बाद फिर से कुछ क्षणिकाएं लिख रहा हूँ | माफ कीजियेगा पर मुझे कई बार ये समझ में नहीं आता है कि कई लोग रोज इतने सारे लेख, कविता, संस्मरण इत्यादि कैसे लिख लेते हैं | उनके प्रतिभा को प्रणाम | इधर तो ऐसा है कि जब तक अपने आप कोई बात दिमाग में न आये, लाख सर फोड लूँ , एक शब्द नहीं निकलता | और महीने में दो तिन या ज्यादा से ज्यादा ५-६ रचनाओं से ज्यादा कभी लिख भी नहीं पाता हूँ | चलिए इस बार आप सबके लिए ले आया हूँ तीन क्षणिकाएं जो देश के मौजूदा हालात पे टिपण्णी है |

१. विभीषण 

रावण के मृत्यु पश्चात
बड़े  धूमधाम से 
बनाया गया विभीषण को 
लंकाधिपति  |
और बनते ही राजा,
विभीषण बन गया 
रावण !

२. कसूरवार 

जब भी जंगल में कोई 
बाहर का भेडिया 
कर जाता है शिकार,
जंगल का राजा शेर
अपने भेडिया मंत्रियों के साथ 
करता है विमर्श, 
दहाड़ता है कि लेंगे बदला,
और फिर गहन चिंतन के बाद
तय होता है कि दोष दरअसल 
उन भेड़ों का है जो बहुसंख्यक हैं,
क्यूंकि उनका रंग सफ़ेद है |

३. हिम्मत

हमें करना होगा 
हिम्मत से सामना,
आतंकवाद और मुश्किलों का,
यह कहकर मंत्री जी
जा बैठे अपने बुलेटप्रूफ 
और वातानुकूलित
वाहन में |

Sep 16, 2011

जानिए सौंदर्य प्रतियोगिताओं के पीछे का सच !


कुछ दिनों पहले ब्राजील के साओ पाओलो शहर में मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता का आयोजन हुआ जिसमे विजयिनी रही अंगोला देश की मिस लीला लोपेज । इस प्रतियोगिता में भारत से मिस वासुकी सुन्कवाल्ली गई हुई थी जो अंतिम १६ प्रतियोगी में भी न आ सकी । ज़ाहिर है इस बात को लेके भारत में हंगामा तो मचना ही था । तरह तरह के लोग तरह तरह की बातें करने लगे
कुछ लोग यह कह रहे थे कि मिस वासुकी इस लायक नहीं थी कि उन्हें इस प्रतियोगिता में भेजा जाय । ज़रूर कोई घोटाला हुआ होगा और भारत में सही प्रतियोगी को चुना नहीं गया होगा (वैसे हमारे देश का अब तक का रिकार्ड देखते हुए ये बात असंभव नहीं लगती है) । कई लोग यह कह रहे थे, कि ऐसी कोई बात नहीं है । सबसे अच्छी प्रतियोगी को ही भेजा गया था । अब बाकी के बेहतर निकले तो इसमें बेचारी मिस वासुकी की क्या गलती है  

कई लोग यह भी कह रहे थे कि मिस वासुकी कोई इतनी सुन्दर तो नहीं है । काली सी दुबली सी लड़की है । ऐसी लड़की को मिस यूनिवर्स जैसे प्रतियोगिता में भेजने के पीछे क्या तर्क था । इसके जवाब में कुछ लोगों ने यह कहा कि यह तो एक प्रकार का भेद भाव है, त्वचा के रंग के आधार पर और यह सर्वथा गलत है । आखिर जीतने वाली भी तो अफ्रीका से है और श्याम रंग की है । और फिर सौंदर्य प्रतियोगिता में केवल रंग रूप थोड़ी न देखे जाते हैं, उसमे तो बुद्धि, विवेचना शक्ति इत्यादि भी जाँची जाती है । हाँ ये बात तो सच है कि बाकी देशों के मुकाबले भारत में ज्ञान-बुद्धि-विवेचन से कहीं ज्यादा महत्व रंग-रूप को दिया जाता है । दरअसल २०० साल से गोरे अंग्रेजों के गुलाम बने रहने का फल यह हुआ कि हमारे दिलो दिमाग में गोरा रंग एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान ले चूका है । हमारी गुलाम मानसिकता हमें यह बताती है कि लड़की (कभी कभी लड़के भी) सुन्दर तभी मानी जायेगी जब वो गोरी हो । लड़का, चाहे वो कितना भी काला क्यूँ न हो, पर जब शादी करने जाता है तो उसे गोरी लड़की ही चाहिए होती है । गोरे गोरे बच्चे देखते है तो हम तपाक से गोद में उठाके प्यार करने लग जाते हैं । काले बच्चों की तरफ तो कोई मुड़कर भी नहीं देखता । बचपन से ही हम बच्चों में भी रंग-रूप के आधार पर भेद-भाव के बीज बो देते हैं

खैर ब्राजील में क्या हुआ और क्या नहीं हुआ यह बहुत ज़रुरी बात नहीं है । ज़रुरी है यह समझना कि दरअसल यह सौंदर्य प्रतियोगिता होती क्या है कई लोगों का कहना है कि ऐसी प्रतियोगिताओं में रूप-रंग, बुद्धि-विवेचना, ज्ञान, जोश, हाज़िर-जवाबी, सभी कुछ जांचा परखा जाता है । 

मुझे ऐसी बातें सुनकर बड़ी हंसी आती है । ऐसी बातें करने वाले चार प्रकार के लोग होते हैं । एक वो जो इन प्रतियोगिताओं से जुड़े होते हैं, उन्हें अपनी दुकान चलानी होती है । ऐसे लोगों में शामिल हैं सौंदर्य प्रतियोगिताओं के आयोजक, प्रायोजक (ज्यादातर प्रसाधन सामग्री बनाने वाले), मिडिया वाले, विज्ञापन वाले) दूसरे वो जिनको इन प्रतियोगिताओं में भाग लेना होता है या भाग लेने के सपने देखते रहते हैं । तीसरे होते हैं नारीवादी लोग, जिन्हें लगता है कि हज़ारों लोगों के सामने सुन्दर कपड़ों से सजकर, या फिर आधी नंगी होकर स्टेज पे चढ़ने से ही नारी मुक्ति संभव है और चौथे विशाल जन समूह जिन्हें इस सौंदर्य महा-यज्ञ के पीछे की असलियत पता नहीं होती है


चलिए आप सबको बताते हैं ऐसी प्रतियोगिताओं के पीछे का सच । दरअसल ऐसी प्रतियोगिताओं में बिजेताओं को न तो रंग-रूप, ना ही बुद्धि-विवेचना, या फिर ज्ञान, जोश या हाज़िर-जवाबी के आधार पर चुना जाता है । विजेताओं को चुनने वाला होता है लागत और राजस्व एकाउंटेंट । अरे नहीं नहीं चौंकिये मत । यही सच है । 

विजेताओं को चुनने का आधार होता है:
१. सौंदर्य प्रसाधन और designer-wear के देश के बाजार में पैठ
२. भू-राजनैतिक सोच-विचार


प्रथम स्थान मिलने का मौका सबसे ज्यादा उन देशों के प्रतियोगी को है जिस देश में सौंदर्य प्रसाधनों के उपयोग का बाजार/पैठ कम है इन सौंदर्य प्रतियोगिताओं के विजेताओं को तो सौंदर्य प्रसाधन और डिजाइनर पहनावों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए एक माध्यम के रूप में किया जाता है । एक बार ऐसे किसी देशके प्रतियोगी को विजेता बना दो और फिर देखते रहो कि इस देश में सौंदर्य प्रसाधन और डिजाइनर पहनावो के बाज़ार में किस तरह उछाल आता है


रनर अप के लिए उन देशों के प्रतियोगी को चुना जाता है जिन देशों में किसी तरह का उथलपुथल या अशांति मचा हो या फिर अकाल, संघर्ष इत्यादि चल रहा हो । उदाहरण स्वरुप दक्षिण अफ्रीका के प्रतियोगी को एक सांत्वना रनर उप पुरस्कार दिया गया जब रंगभेद नीति के पतन के बाद दक्षिण अफ्रीका पहली बार ऐसी प्रतियोगिता का आयोजन किया । इसी तरह सीरिया, अफगानिस्तान, इरान, लीबिया के सुन्दरिओं को ऐसी प्रतियोगिताओं में रनर उप स्थान प्राप्त होने का मौका ज्यादा है


इससे पहले भारत ने ४ से ५ बार इन प्रतियोगिताओं में जीत हासिल की क्योंकि पश्चिमी कंपनियों द्वारा निर्मित सौंदर्य प्रसाधनों का उपयोग भारत में बहुत कम था अब भारतीय लड़के-लड़की पश्चिमी/अमेरिकी फैशन के नशे में पूरी तरह डूब चुके हैं । यह कहना गलत नहीं होगा कि आज हमारे युवा वर्ग फैशन लिए एक तरह से पागल हो चुके हैं । पश्चिमी सभ्यता के साथ साथ पश्चिमी विलास-व्यसन भी अपना चुके हैं । अब तो पश्चिमी फैशन, प्रसाधन सामग्री इत्यादि का भारत में विशाल बाज़ार बन चूका है । इसलिए अब तो आने वाले एक लंबे समय तक के लिए एक और भारतीय मिस यूनिवर्स बनवाने की जरूरत नहीं है । हाँ, अगर अचानक किसी कारण से पश्चिमी प्रसाधन सामग्रीओं तथा फैशन सामग्रीओं के खपत के कोई गिरावट आती है तो ज़रूर एक-दो भारतीय मिस यूनिवर्स या मिस वर्ल्ड फिर से बन जायेंगे


असलियत तो यह है कि करोड़ों के व्यापार करने वाली पश्चिमी कंपनियों को भारत में घुसने के लिए एक माध्यम, एक जरिया चाहिए था । अचानक भारत से कई लड़कियां (ऐश्वर्या, लारा, सुष्मिता, प्रियंका, दीया मिर्जा) सौंदर्य प्रतियोगिताओं में जीतने लगे । ये कंपनियां चाहती थी कि भारत के युवा वर्ग, खासकर लड़कियां इन भारतीय विजेताओं को देखकर, उन्हें अपना आदर्श मानकर सौंदर्य प्रसाधनों का उपयोग ज्यादा से ज्यादा शुरू कर दे । यह इन शक्तिशाली और अर्थशाली कंपनियों के लिए केवल एक आर्थिक योजना मात्र था । ऐसी बात तो नहीं है कि भारतीय महिलाएं इससे पहले सुन्दर नहीं थी । फिर अचानक कुछ सालों तक, एक के बाद एक भारतीय ललनाओं का इन प्रतियोगिताओं में जीतना, सोचने वाली बात है । 

उम्मीद है कि मेरा यह लेख पढकर आप सबको ऐसी सौंदर्य प्रतियोगिताओं के पीछे का असलियत का पता चलेगा

Sep 5, 2011

शिक्षक दिवस ... कुछ ख्यालात

आज समग्र भारत देश शिक्षक दिवस मना रहा है । यह दिन भारत के दूसरे राष्ट्रपति, शैक्षिक और दार्शनिक डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन है यह एक "उत्सव" का दिन माना जाता है, जब अपने अपने स्कूल या कॉलेज तो आना होता है पर सामान्य गतिविधियों की जगह शिक्षकों को सम्मान दिया जाता है और समाज के प्रति उनके अवदान को स्मरण किया जाता है
पर शिक्षा है क्या ?
क्या शिक्षा वही है जो हम केवल स्कूल या कॉलेज में सीखते हैं या फिर वह जो, जिंदगी हमें सिखाती है । जब हम जन्म लेते हैं तो हमें कुछ भी नहीं पता होता है । हमारा दिमाग बिलकुल कोरे कागज़ के जैसे होता है जिस पर कुछ भी नहीं लिखा होता है । फिर धीरे धीरे हम बोलना सीखते हैं, चलना सीखते हैं । ये सब हमें कौन सिखाता है ? हमारे माता पिता, हमारे घर के बुज़ुर्ग, जैसे कि दादा-दादी, नाना-नानी, बुआ, मौसी, मामा, चाचा, बड़े भैया या दीदी इत्यादि । तो क्या ये लोग हमारे लिए शिक्षक नहीं हैं ?
ये सब भी दरअसल हमारे शिक्षक हैं । शिक्षक तो हर वो शख्स है, जिससे हम कुछ सीख पाते हैं । 
क्या शिक्षा कभी खतम होती है ? कई बड़े बड़े महापुरुष यही कह गए हैं, और मेरा भी यही मानना है, कि शिक्षा कभी खतम नहीं होती है । हम अपने जीवन के अंतिम दिन तक सीखते रहते हैं ।  फर्क यही है कि जब हम स्कूल-कॉलेज में पढते हैं तो किताबों से सीखते हैं और जब हम स्कूल-कॉलेज से बाहर आते हैं तो जिंदगी खुद हमें सिखाती है कि कैसे जीना है । 
जब हम किताबों की दुनिया से बाहर आते हैं, तब हमें एहसास होता है कि जिंदगी केवल वही नहीं है जो किताबों में लिखी हुई है । शब्दों को पढ़ना अलग बात होती है और जिंदगी के उंच-नीच को सहना और उनसे सीखना एक अलग बात
कई लोग ठोकर खाके सीखते हैं तो कुछ दूसरों को ठोकर खाते हुए देखकर सीख जाते हैं । खैर जो भी हो, इसे ही तजुर्बा कहते हैं । 
और तजुर्बा तो हम किसी से भी हासिल कर सकते हैं । किसी बुज़ुर्ग आदमी को हम तजुर्बेकार कहते हैं क्यूंकि वो ज्यादा दिन तक तजुर्बा हासिल करते रहा है । हाँ, इसका मतलब ये कतई नहीं है कि केवल उम्र ज्यादा होने से ही तजुर्बा या यूँ कह सकते हैं, योग्यता, ज्यादा हो । कभी कभी कई लोग कम उम्र में ही इतना तजुर्बा हासिल कर लेते हैं जितना करने में बाकियों की उम्र कट जाती है । ये इस बात पे निर्भर है कि आप किस तरह की परिस्थितिओं से होकर गुजरे हों । 
कहने का मतलब यह है कि हमारी चारों ओर जो हो रहा है, हमारा मस्तिष्क उन्ही बातों को ग्रहण करते जाता है और वही सीखता है जो देखता है और अनुभव करता है । यह बातें हमारे दिलो-दिमाग पर और नतीजतन हमारे स्वभाव पर अमिट छाप छोड़ जाती है । और धीरे धीरे हमारा व्यक्तित्व बन उठता है
कहते हैं कि स्कोटलैंड का निर्वासित राजा ब्रुस एक गुफा में एक मकड़ी की जाल बुनने की कोशिशों से उत्साहित होकर इंग्लॅण्ड के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था और आखिर विजय प्राप्त किया था । जब एक देश का राजा एक मकड़ी से सीख सकता है तो हम क्यूँ नहीं ?
जिंदगी हर मोड पे, हर रूप में, कुछ न कुछ सीख देती है । ये तो हम पर है कि हम किस तरह इस सीख को ग्रहण करते हैं और अपने दैनंदिन जीवन में प्रयोग करते हैं
दरअसल अक्सर ऐसा होता है कि हमारा अहंकार हमें सीख ग्रहण करने से रोकता है । जब हम छोटे थे, तब हमारे अंदर कोई अहंकार नहीं था । हमें कोई कुछ भी सिखाय हम सीख लेते थे । जैसे जैसे हम बड़े होते गए, हमारे अंदर अहंकार घर करने लगा । धीरे धीरे हमें यह लगने लगता है कि हम बहुत कुछ सीख गए हैं और बहुत ज्ञानी हो गए हैं । फिर हम ये बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं कि कोई हमसे उम्र में छोटा, या सामाजिक रूप से हमसे कमतर हमें कोई सीख दे सकता है । शिक्षा और हमारे बीच, हमारा अहंकार खड़ा हो जाता है । 
महान वैज्ञानिक आइजक न्यूटन ने कहा है कि वो ज्ञान के महासागर के किनारे खड़े होकर रेत के कुछ दाने बटोर रहे हैं । उनके इस नम्रता से हमें सीखना चाहिए । जब उनके जैसे महान वैज्ञानिक इतना विनीत हो सकते हैं, तो हमारी औकात ही क्या है ? क्यूँ हम ये सोचें कि हम बहुत कुछ सीख चुके हैं, बहुत कुछ जान गए है ? अगर न्यूटन ज्ञान के महासागर के किनारे रेत के दाने बटोर रहे थे, तो हम तो अभी उस महसागर के किनारे पहुँच भी नहीं पाए हैं । फिर कैसा घमंड, किस बात का अहंकार ?
यदि हम अपना अहंकार छोड़ दे, तो कितना कुछ है सीखने के लिए । फिर ज्ञान हर दिशा से हमारी ओर आने लगेगा । पानी सोखने के लिए स्पांज जैसा नरम बनना पड़ता है, नाकि पत्थर जैसा सख्त । दिल में विनम्रता हो तो खुद व खुद आप शिक्षा के राह में चल पड़ेंगे और आपके ज्ञान का स्तर और ऊँचा, और ऊँचा, होता जायेगा
सबसे बड़ा शिक्षक है विनम्रता !

आप को ये भी पसंद आएगा .....

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...