फेसबुक पर श्रीमान महफूज़ अली जी की एक बात
पढकर मेरा मन सोचने पर विवश हो गया | महफूज़ ने लिखा है कि वो हवाई जहाज से यात्रा
करते समय हिंदी ब्लॉग खोलने पर लोग उन्हें हिकारत की नज़र से देखने लगे | इससे
उन्हें दुःख हुआ एवं वो इस बात पे सबकी दृष्टि आकर्षित करने के लिए फेसबुक पे इसका
ज़िक्र किया | उनकी यह पोस्ट पढकर मैं भी यह सोचने लगा कि आखिर ऐसा क्यूँ है |
बहुत सोचने पर पाया कि जो भारतीय लोग हिंदी
या अन्य भारतीय भाषाओँ को निम्न कोटि के मानते हैं यह दरअसल उनकी गलती नहीं है | २००
साल अंग्रेजों की गुलामी के बाद यह स्वाभाविक है कि प्रभु की भाषा को प्राधान्य दी
जाय और उसे ही श्रेष्ठ समझा जाय और खुद की भाषा को निकृष्ट | और फिर हिंदी के
प्रचार प्रसार और उन्नति के लिए कोई काम हुआ भी तो नहीं है | जहाँ अंगरेजी में निरंतर
उन्नति और बदलाव आते गए, वहीँ हिंदी एक ठहराव में फंसकर रह गई | आज ज़रूरी हो गया
है कि हम भारतीय भाषाओँ में उन्नति लायें | और यह तभी संभव होगा जब हम
- अपनी भाषा पे गर्व करना सीखे – गुलाम मानसिकता से बाहर निकलना ज़रूरी है | अंग्रेज हमें यह सिखाकर गए हैं कि उनकी हर बात अच्छी और हमारी हर बात घटिया है | यह बात हमारे दिलो-दिमाग में रच-बस गई है | हमें इस बात को भूलना होगा | नए सीरे से अपनी भाषा से प्यार करना होगा | इस बात को समझना होगा कि जो लोग अपनी भाषा को भूलकर केवल अंगरेजी से प्यार करते हैं ... वो दरअसल आज भी मानसिक रूप से गुलाम हैं | देश में सच्ची आज़ादी तभी आ पायेगी जब हमें इन मानसिक बेड़ियों को तोड़ पाएंगे | अंगरेजी एक वैश्विक भाषा है | उसे सीखना गलत नहीं है ये यूँ कहे अंगरेजी कोई घटिया भाषा नहीं है | पर अंगरेजी सीखने का मतलब यह नहीं है कि हम अपनी भाषाओं को भूला दें |
- अपनी भाषा कि उन्नति के लिए कोशिश करें - यदि उसमे बदलाव कि ज़रूरत है तो वह बदलाव लाएं | तकनिकी क्षेत्र में हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं को प्रयोग करें और उसके लिए ज़रूरी शब्द बनाएँ | अंगरेजी भाषा केवल इसलिए वैश्विक भाषा नहीं बनी कि अंग्रेजों की भाषा है | बल्कि उसके पीछे कारण यह है कि अंगरेजी समय के साथ तेजी से बदलती गई और उन्नति करती गई | खासकर तकनिकी क्षेत्र में | वहीँ भारतीय भाषाओँ में केवल धर्म और प्रांतीयता से जुड़े रहने के कारण बदलाव नहीं आ पाया | आज हमें हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओँ को तकनिकी क्षेत्र में प्रयोग करने का समय आ गाय है | उसके लिए यदि ज़रूरी है तो उनमें तबदीली लायी जाय |
- भारतीय भाषाओँ का प्रचार प्रसार हो – सरकारी तौर पर भारतीय भाषाओँ का प्रचार प्रसार को अधिक महत्वा दिया जाय |
- भारतीय भाषाएँ, खासकर हिंदी में काम करने वालों को प्रोत्साहन दिया जाय – इसके लिए हर दफ्तर, हर महकमे में मुहीम चले |
- हिंदी समाचार पत्र, पुस्तक एवं अन्य दस्तावेजों में तबदीली लाइ जाय और उन्हें बेहतर बनाई जाय – प्रचार प्रसार में सबसे ज़रूरी बात होती है गुणवत्ता की |
इस बारे में आप अपने
ख्याल से मुझे अवगत करवाइए | पाठकों से अनुरोध है कि वो केवल सहमति या असहमति न
जताकर, अपने विचार टिपण्णी के स्वरुप में लिखें |
जो सलाहें आपने दी हैं, इन्हें मैं अपनी जवानी से सुनता आ रहा हूं और अपनी जवानी में शेख़चिल्ली सुन रहा है। किसी ने इन्हें मानी होती तो आज शेख़चिल्ली को इंग्लिश कोचिंग न करनी पड़ती।
ReplyDeleteअपने गधे पर बैठकर सड़क पर चले तो दायें बायें हिंदी नज़र आई और जब हवाई सफ़र के लिए हवाई अडडे पहुंचे तो हिंदी के देस में हवाई जहाज़ की बॉडी पर भी हिंदी में कुछ लिखा हमने देखा ही नहीं।
अब करना ये है कि हिंदी बोलने वाले बिदेस जा रहे हैं और अपनी तादाद बढ़ा रहे हैं। इस तरह हिंदी फैल रही है। ग़ुलाम जहां भी जाए अपनी पहचान नहीं भूलता। कुछ वक्त बाद ग़ुलाम राज भी करते हैं। ओबामा कर ही रहा है। हिंदी बोलने वाले का नंबर भी आएगा। थोड़ा सब्र करो और इंतेज़ार करो।
महफ़ूज़ भाई को इंग्लिश आती है तो उन्होंने बाद में दो चार साइटें इंग्लिश की खोल कर अपनी इज़्ज़त ज़रूर बहाल की होगी। वैसे भी कोई बोलता थोड़े ही। एयर हॉस्टेस ने पहले ही ऐलान कर दिया होगा कि महफ़ूज़ भाई आलोचना करने वालों को घर में घुसकर मारते हैं और रिकॉर्ड बताते हैं कि वह लंदन में थे।
महफ़ूज़ भाई अगर लंदन से ही आ रहे थे तो इस बार मैटर मारपीट से ज़्यादा संगीन लगता है।
:)
आपकी पहली तीन पंक्ति में आपने जो भी कहा इसका यह मतलब निकलता है कि अब तक कुछ नहीं हुआ अब क्या ख़ाक होगा ....
Deleteआपकी बाद की पंक्तियों से यह जान पड़ता है कि सब्र करने से यह भी हो सकता है कि हिंदी को भी वह सम्मान मिले जो आज अंग्रेजी को मिल रहा है ...
यह दो बातें विरोधाभासी हैं ... और मैं दोनों से असहमत हूँ ... न तो यह सही है कि कुछ बदला नहीं जा सकता है ... और नहीं ही यह कि केवल इंतज़ार करने से कुछ बदलेगा ... हिंदी को खोया सम्मान दिलाना है तो सकारात्मक कदम उठाना होगा ... निजी तौर पर और राष्ट्रिय तौर पर ... साकार को भी इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे ...
सच है जब तक अपनी भाषा पर गर्व नहीं होगा हमारे देश को भी वह सम्मान और गौरव नहीं मिल सकेगा.
ReplyDeleteआप सही बात को समझ पाई इसके लिए धन्यवाद !
Deleteमहफ़ूज़ की बात से इतना तो हुआ कि आपने इतने अच्छे सुझाव दिए....कम से कम कोशिश तो की ही जा सकती है हमारी ओर से ....अब इस पोस्ट को लिये जा रही हूँ- प्रचारित करने के लिए- मेरी प्यारी भाषा हिंदी को....
ReplyDeleteधन्यवाद ... :)
Deleteजब तक समग्रता से प्रयास नही किया जायेगा कैसे हमारी भाषा का उत्थान होगा ………आपके सुझाव सराहनीय हैं।
ReplyDeleteयही तो मैं कह रहा हूँ कि यदि हम सच में चाहते हैं कि हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओँ की उन्नति हो तो प्रयास होना चाहिए और वो एक समग्र प्रयास होना है ...
Deleteआपके सुझाव विचारणीय एवं अनुकरणीय हैं। लेकिन इसी देश के काबिल प्रोफेसर जिनके पुत्र-पुत्र वधू IAS हैं यह प्रचारित करते रहते हैं कि अङ्ग्रेज़ी न जानने वाला भूखा मर जाता है। शिक्षा को धन कमाने से जोड़ दिया गया है और अच्छी नौकरियाँ 'अँग्रेज़ीदाँ'हड़प जाते हैं। इस स्थिति को बदलना होगा।
ReplyDeleteप्रोफेस्सर या उसनके पुत्र/पुत्रवधू जो कह रहे हैं वो झूठ नहीं है ... यह एक शर्मनाक स्थिति है कि आज केवल अंग्रेजी जानने वालों को फायदा पहुँचता है ... और भारतीय भाषाओँ के ज्ञानी उपेक्षित हैं ...
Deleteइस स्थिति को बदलने की कोशिश करनी होगी ताकि भारतीय भाषाओँ को ज्यादा से ज्यादा प्रयोग में लाइ जा सके
सुझाव सराहनीय हैं आपके
ReplyDeleteधन्यवाद !
Deleteहमें तो हिंदी के अलावा कुछ अन्य भारतीय भाषाएँ आती हैं........ लेकिन अंग्रेजी नहीं आती. अपना काम तो हिंदी से ही चल जाता हे. जिसे समझना हो समझे, न समझाना हो न समझे. जय हिंद जय हिंदी.
ReplyDeleteहाँ! एयर होस्टेस समझ जाती हैं मेरी भाषा.....:))
ललित जी, भारत के बाहर रहने के लिए अंग्रेजी का ज्ञान ज़रूरी होता है क्यूंकि यह एक वैश्विक भाषा है ... लेकिन हम भारतीय मिलकर कम से कम भारत के अंदर तो हिंदी को ज्यादा से ज्यादा प्रयोग में ला ही सकते हैं ...
Deleteहमें बाहर जाना ही नहीं हे...... भारत ही इतना विशाल है कि इसे जानने और देखने के लिए एक उम्र भी कम है, मेरा कमेन्ट व्यक्तिगत है. सभी पर लागु नहीं. भाषाएँ सभी सीखनी चाहिए. वैश्विक संपर्क के लिए. लेकिन भारत में अंग्रेजी की बाध्यता नहीं होनी चाहिए.
Deleteभारत में अंग्रेजी की कोई सरकारी बाध्यता नहीं है ... कोई भी किसी भी भाषा में शिक्षा ग्रहण कर सकता है ... यहाँ बाध्यता सामाजिक है ... अंग्रेजी बोलने पढ़ने वाले को बेहतर नौकरी मिलती है, विदेश जाकर ज्यादा धन कमाने का मौका मिलता है ... हर कोई चाहता है कि बच्चा अंग्रेजी माध्यम विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करे ... बाध्यता मानसिक है ... हम खुद अंग्रेजी बोलने वाले को ज्यादा सम्मान देते हैं ...
Deleteअपने स्तर पर तो प्रयास करते ही हैं, आगे से और ध्यान रखेंगे|
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Deleteसंजय जी ... हर कोई अपने स्तर पर प्रयास करे बस इतना ही काफी है ...
Delete...पढ़ कर आश्चर्य होता है कि हिन्दी को निकृष्ट भाषा के तौर पर जाना जाता है!...लंदन जा कर तो ऐसा लगा ही नहीं कि हम विदेश में है!...बस,ट्रेन,रेलवे-स्टेशन,शौपिंगमॉल...सब जगह पर हिन्दी बोलने वालों की बड़ी तादाद है!..ये लोग भारतीय,पाकिस्तानी और बांगलादेशी भी है!
ReplyDelete...जर्मनी में उल्टा इंग्लिश बोलने वाले की तरफ कोई ध्यान नहीं देता...'हमें इंग्लिश नहीं आती' कहकर जर्मन लोग दूसरी तरफ देखने लग जाते है! आप हिन्दी बोलेंगे तो आप की बात ध्यान से सुनेंगे और समझ न आने पर इशारों का सहारा लेंगे!आपकी अवहेलना कदापि नहीं करेंगे!...मतलब कि वहाँ हिन्दी भाषा का उचित सन्मान किया जाता है!
...इसी से पता चलता है कि हिन्दी का कितना प्रचार-प्रसार हो रहा है!...आगे और भी होगा!इस दिशामें बहुसंख्य जन कार्य कर रहे है!...बहुत सुन्दर और विचारणीय लेख!
धन्यवाद अरुणा जी ... देश के बाहर हिंदी को जो सम्मान मिल रहा है वो देश के अंदर भी मिले को कितना अच्छा हो ...
Deleteआपके सुझाव उत्तम हैं .. पर सच कहूं तो ये दिल की बात है ... मैं हमेशा महीने में एक या दो बार इंटरनेशनल ट्रेवल करता हूँ हमेशा हिंदी की किताब साथ रखता हूँ ... हिंदी का ब्लॉग खोलता पढता हूँ ... आज तक कभी ऐसा महसूस नहीं हुवा ... मुझे लगता है सबसे पहले खुद को ही इस बात पर गर्व महसूस करने की आदत डालनी होगी ... और जो हिराकत की नज़र से देखता है उसे और ज्यादा हिराकत की नज़र से देखना चाहिए जैसे की उसके लिए ये शेम की बात है ...
ReplyDeleteनासवा जी मैं आपसे सहमत हूँ ... इसीलिए तो मैंने ये कहा है कि भाषा की उन्नति के लिए सर्वप्रथम यह आवश्यक है कि हम अपनी भाषा पर गर्व करना सीखें ... भाषा को लेकर हीन भावना को त्याग दें ...
Deletebhasha par garv to hai ,lakin usmay bhi adanga hai kahi naukari karnay jayeey nahi milengi kyoki angreji nahi aati aajkal to teacher banna bhi mushkil hai.
ReplyDeleteइसीलिए तो और ज़रूरी है कि भारत में भारतीय भाषाओँ को ज्यादा महत्व दी जाय !
Delete‘ब्लॉग की ख़बरें‘ हिंदी की सेवा के लिए तत्पर है।
ReplyDeleteस्वागतम!
Deleteधन्यवाद!
ReplyDeleteSail bhai aajkal hindi back-seat pe chalee gayee hai aur angrezi aur doosri bhaashaayein aage nikal gayee hain!
ReplyDeleteक्यूंकि हम हिंदी को प्राथमिकता नहीं दी है ... जिस दिन देना शुरू करेंगे ... हिंदी अपने आप सामने की सीट पे आ जायेगी !
Deleteयह बात तो डोमेस्टिक फ्लाईट की है... और वाकई में ऐसा हुआ था... टाइम की शौर्टेज की वजह से पूरा वाकया नहीं लिख पा रहा हूँ...
ReplyDeleteब्बाय टेक केयर..
पोस्ट बहुत अच्छी लगी...
बात डोमेस्टिक फ्लाईट की ही हो सकती है ... क्यूंकि बाहर के लोग हमारे भाषा से घृणा नहीं करते हैं ... यह काम हम भारतीय खुद करते हैं ...
Deletekyaa kisi ne aesaa kehaa unsae
ReplyDeleteउन्होंने कुछ महसूस किया होगा तभी लिखे हैं ... वैसे ये बात मैंने भी कई बार महसूस की है ... शायद ऐसी बात कोई मुह से न कहे पर हाव भाव से ज़ाहिर होता ही है ...
Deleteक्या जाहिर होता हैं ??? कहीं ऐसा तो नहीं की ये हाव भाव महज आप लेप टॉप की भाषा ना समझ आने की वजह से हो या आप के प्लेन में भी कंप्यूटर चलाने की वजह से हो . क्या आप हिंदी में ब्लॉग लिखते हैं या अपना काम हिंदी में करते हैं जैसे ईमेल इत्यादि जब आप को ये महसूस होता हैं
Deleteजहाँ तक मेरी बात है ... मैं हिंदी में ही ब्लॉग लिखता हूँ ... आप मेरे हिंदी ब्लॉग पे ही कमेन्ट कर रही हैं ...
Deleteजो मुझे हिंदी में इमेल देता है उसे मैं हिंदी में ही जवाब देता हूँ ... यहाँ तक कि फेसबुक में भी हिंदीभाषी लोग या ब्लॉग वालों से मैं हिंदी में ही चैट करता हूँ ...
फ्लाईट डोमेस्टिक हो या अंतर्देशीय उससे क्या फर्क पड़ता है? हवाई जहाज में सफर करते समय कई लोग लैपटॉप खोलके बैठते हैं ...
रही बात क्या ज़ाहिर होने कि ... तो यही ज़ाहिर होता है कि हिंदी कोई अपनी भाषा न होकर किसी गैर भाषा हो गई हो ...
आपने हवाई जहाज में यात्रा करते समय कितने लोगों को हिंदी में बात करते हुए सुने हैं ... मैंने तो बहुत कम ही को हिंदी में बात करते हुए सुना हूँ ... ज्यादातर अंग्रेजी में बात करते हैं
I think my answer was not correctly interpreted so putting it in english { you may or may not publish it }
DeleteI asked you how did you make out that they did not like you using hindi on laptop
Did they say it or did you guess it from their expression
If you thought so because of their expression then may be it was there because they were unable to understand what you were doing
or
may be the expression was there because they felt it was not correct to use a lap top in plain
My next point was when you felt like this were you doing bloging in hindi ore were you doing your official work in hindi
There can be many reasons for a person to give a expression that they are not liking what you are doing
how did you interpret it was because of your using hindi
रचना जी मैं अपने ब्लॉग पे moderation नहीं रखा हूँ ... आपकी टिप्पणी खुद व खुद प्रकाशित होगी ..
Deleteआप हिंदी में लिखिए चाहे अंगरेजी में कोई फर्क नहीं पड़ता ... वैसे आप पहली व्यक्ति हैं जो मेरे ब्लॉग पे आकर अंगरेजी में इतनी लंबी चौड़ी टिप्पणी दे गई :)
शायद आपने मेरा आलेख पढ़ा ही नहीं है ... पढ़े होते तो बार बार एक ही बात नहीं दोहराते कि मेरे लैपटॉप इस्तमाल करने की वजह से या हिंदी इस्तमाल करने की वजह से लोग परेशां हुए !!!!
यदि आप मेरा पोस्ट पढ़ी होती तो आपको पता चलता कि इस पोस्ट में जिस वाक्य के बारे में मैंने लिखा है वो मेरे साथ नहीं श्रीमान महफूज़ अली के साथ घटित हुई है ...
दूसरी बात, लोग महफूज़ अली जी के लैपटॉप इस्तमाल करने से परेशां हुए या हिंदी इस्तमाल करने से ये तो मैं नहीं बता सकता हूँ, ये वोही बता पाएंगे ... पर चूँकि महफूज अली एक पढ़े लिखे, समझदार नौजवान हैं ... मैंने ये मान लिया कि वो जब कह रहे हैं कि लोगों को उनका हिंदी इस्तमाल से अचरज हुआ ... तो वो सही कह रहे होंगे, उन्हें लोगों के वर्ताव सही ढंग से पहचान आई होगी ...
हाँ अब आप पूछ सकते हैं कि मैंने कैसे मान लिया कि महफूज़ ने सही कहा या उनकी समझ सही है ... तो यहाँ मैं ये बता दूँ कि कई बार बिना मुंह से कहे भी आप लोगों के हाव भाव से ये अंदाजा लगा सकते हैं कि उनके मन में क्या चल रहा होगा या उनका प्रतिक्रिया क्या हो सकता है ...
मसलन कई बार हवाई जहाज से सफर करते समय मैंने किसी से हिंदी में बात करने के बावजूद यदि कोई अंगरेजी में ही जवाब दे तो इस्क्जा क्या मतलब हो सकता है ?
यदि वो व्यक्ति दक्षिण भारतीय है तो मैं समझ सकता हूँ ... कई दक्षिण भारतीय लोगों को हिंदी अच्छी तरह न आने के कारण वो बोलने से हिचकिचाते हैं ...
पर यदि वो व्यक्ति उत्तर भारतीय हो, लेकिन फिरभी हिंदी में बात न करना चाहे तो ... आखिर क्यूँ ?
Deleteहा यहाँ आप कह सकते हैं ... हर कोई स्वतंत्र है अपनी पसंद की भाषा इस्तमाल करने के लिए ... बिलकुल है ... पर भारतीय होकर भी यदि कोई हिंदी में बात करने से परहेज करे ... और हर बात अंगरेजी में ही करे ... हिंदी में सवाल करने के बावजूद ... जो इसका एक ही मतलब निकलता है ...
आपने कभी हवाई जहाज में सफर करने वाले किसी भारतीय को हिंदी साहित्य सेवन करते हुए देखा है ? मैंने तो नहीं देखा है ... और मैं अक्सर हवाई जहाज से सफर करते रहता हूँ ...
और हाँ कई बार चेहरे के हाव भाव से भी मुझे यह प्रतीत हुआ है कि हिंदी का इस्तमाल पसंद नहीं किया जा रहा है ...
ये अलग बात है कि आप मुझे, महफूज अली को या मेरी तरह कई लोगों को इतनी नासमझ कह सकती हैं कि शायद हमें दूसरों के हावभाव समझ ही न आता हो ... :)
तीसरी बात यह है ... कि इतनी बार हवाई जहाज से सफर करने के बावजूद आज तक मैंने किसीको लैपटॉप इस्तमाल करने कि वजह से परेशां होते हुए या विरोध जताते हुए नहीं देखा ... यह सब को पता है कि हवाई जहा take-off और landing के समय इलेक्ट्रोनिक उपकरणों का इस्तमाल मना होता है ... इसलिए सभी लोग तभी लैपटॉप, मोबाईल इत्यादि का इस्तमाल तभी करते हैं जब हवाई जहाज ऊपर उड़ रही हो ... मुझे लगता है महफूज अली जी को भी यह बात पता होगी ... मैं भी तभी इस्तमाल करता हूँ ... मैंने आजतक सभी लोगों को तभी इस्तमाल करते हुए देखा है ...
यदि आप ध्यान से मेरा पोस्ट पढ़ी होती तो शायद आपको पता चलता कि मैंने यह कहा है कि हमारी सरकार को, कम से कम सरकारी दफ्तरों में, हिंदी का इस्तमाल बाध्यता मूलक कर देना चाहिए ... इसका मतलब ये हुआ कि आज के भारत में सरकारी या निजी दफ्तरों में हिंदी का इस्तमाल अनिवार्य नहीं है ...
और फिर चूँकि मैं एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ और भारत से बाहर रहता हूँ तो दफ्तर के कार्य में हिंदी का इस्तमाल संभव भी नहीं है ...
आप एक बार और मेरे पोस्ट को पढेंगे तो आपको यह दिखेगा कि मैं यही बात कही है कि दुनिया के कई उन्नत देशों की तरह हमारे देश में भी हिंदी का इस्तमाल, सरकारी दफ्तरों में, अनिवार्य कर देना चाहिए ... कम से कम हिंदी और अंगरेजी दोनों को सामान मर्यादा देना चाहिए ... जो आज नहीं है ... आज केवल मात्र हम एक हिंदी सप्ताह मना कर ही काम चला लेते हैं ...
Deleteआपका इस बात पे सवाल उठाना कि कोई यह कैसे जान सकता है कि लोगों को हिंदी के इस्तमाल से या लैपटॉप के इस्तमाल से नाराज़गी/परेशानी है ... किसीके समझ बुझ पे सवाल लगाता है ... मैं पहले ही कह चूका हूँ कि मैं महफूज अली को एक पढ़ा लिखा, समझदार इंसान मानता हूँ इसलिए मैं उनकी इस बात पे शक नहीं करता हूँ कि वो जो भी महसूस किये होंगे सही महसूस किये होंगे ... उनकी यह बात मुज्खे सही लगने का एक कारण यह भी है कि मेरा पाना तजुर्बा भी इस बात को समर्थन करता है ...
शायद मैं आपके सवालों का जवाब दे पाया हूँ ... आपके प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा ... शायद इस बात पे मैं एक नया पोस्ट लिखूं ...
भले ही अंग्रेजी आज की ज़रुरत है...अंग्रेजी में लिखना, बोलना आज कल स्टेटस सिम्बोल है... हिंदी जब तक ज़रुरत न हो जाए तब तक शायद यही हाल रहने वाला है... :(कुछ तो ऐसा होना चाहिए जहाँ हिंदी का ज्ञान होना अनिवार्य हो... अंग्रेजी बोर्ड के विद्यालयों में तो हिंदी ऐच्छिक विषय है.. ऐसे में भला कहाँ हिंदी का विकास होना है...
ReplyDeleteआपने सही कहा है ... हिंदी को अनिवार्य कर देना चाहिए ... लेकिन शायद यह दक्षिण के राज्यों में मान्य ना हो ... कम से कम सरकारी दफ्तरों में तो हिंदी में ही कार्य होना चाहिए !
Deleteमेरे ब्लॉग परशुक्रिया ज़िन्दगी.....
ReplyDeleteश्रीमान महफूज़ अली को ख़ुद ही हिंदी भाषा और हिंदी ब्लोगर्स नहीं पसंद हैं | हज़ारों बार कह चुके हैं हिंदी ब्लॉग्गिंग में सब फ़ालतू लोग हैं और लाखों बार बता चुके हैं हर जगह वो ख़ुद की हिंदी बेकार भाषा है, मुझे हिंदी आती ही नहीं है | अंग्रेजी की दुहाई और अपनी अंग्रेजी हर जगह फ्लैश करते ही रहते हैं | कहीं लैप टोप के स्क्रीन पर ख़ुद को ही तो नहीं देख लिया ? यह बात निराधार है | फलाईट में इलेक्ट्रोनिक equipment बन्द करना पड़ता है, नियम के विरुद्ध अगर कोई काम करेगा तो उसे लोग हिकारत से देखेंगे ही | ऐसा भी नहीं है की फ्लाईट अब सिर्फ़ एलिट क्लास के लिए रह गई है | हवाई जहाज में सफ़र करना अब इतनी बड़ी बात भी नहीं है| ज़रूर उनकी किसी और हरकत से लोग उखड़े होंगे | हो सकता है उन्होंने जो साईट खोली हो वो सही न हो | किसी को कैसे पता चल सकता है की यह 'हिंदी ब्लॉग्गिंग' की साईट है, जब तक बताया न जाए | सिर्फ़ देवनागरी लिपि देख कर कोई नाक-भौं सिकोड़े, मुझे नहीं लगता ऐसा होगा | बात कुछ जमी नहीं | हिंदी का इसमें कोई लेना देना नहीं है | आपलोग भी अपना दिमाग लगाया कीजिये, किसी ने कुछ भी अनाप-शनाप कह दिया और आपने पोस्ट लिख दी | और अगर किसी एक व्यक्ति ने ऐसी नज़र से देखा भी तो क्या यह इतनी बड़ी बात है की आप भारत में लोग हिंदी से नफ़रत करते हैं यह आशय निकाल लेंगे ? आज से पाँच साल पहले शायद ५००० हिंदी ब्लॉग थे आज ५०००० हैं यह हिंदी से नफ़रत का नातीज़ा नहीं हो सकता | महफूज़ अली ख़ुद रोज़ कहते नज़र आते हैं हिंदी ब्लोगर्स बेकार हैं, मुझे हिंदी नहीं आती, हिंदी ब्लोगर्स बेकार लिखते हैं, मैं बहुत बड़ा अंग्रेजीदां हूँ | यहाँ की इतनी सारी कमियों को जानते-पहचानते हुए भी यही चिपके हुए हैं | तो कुछ तो बात है हिंदी ब्लॉग्गिंग में | इस तरह की पोस्ट लिखने से पहले थोड़ा सोचना ज़रूरी है | हर बात जो हर इन्सान कहता है ज़रूरी नहीं की वो सच हो | कुछ लोगों को चर्चा में बने रहने और हाईप बनाने की आदत है |
ReplyDeleteआपको हिंदी की प्रगति के लिए आह्वान करने के लिए ऐसे बेतुके बहाने की ज़रुरत नहीं थी | आपकी बाक़ी सभी बातों से सहमत हूँ, हिंदी की उन्नति में हमारा हाथ होना ही चाहिए | हिंदी हमारी भाषा है और हमें हर हाल में गर्व होना चाहिए|
आप इतनी मजबूती के साथ अपनी बात रख रहे हैं लेकिन अपना नाम या पहचान चुप रहे हैं ... ताज्जुब है !
Deleteआप मेरी ऊपर दी गई टिप्पणी को पढियेगा ज़रूर आपको आपकी कई बातों का जवाब मिल जायेगा ...
अब मैं आपके सवाल का जवाब मेरे कुछ सवालों से देता हूँ ...
आपने कहा कि मैं महफूज अली जी के अनाप शनाप बकने पे एक बेकार सा निष्कर्ष निकालकर एक बेतुका पोस्ट लिख दिया ... तो मेरी बात की पुष्टि के लिए मैं आपसे कुछ सवाल करता हूँ ...
आपने ये कैसे निष्कर्ष निकाल लिया कि केवल महफूज अली जी के कहने पे ही मैंने मान लिया ... भाईसाब/या बहन जी आप जो भी हों ... आपके अलावा दुसरे भी दिमाग रखते हैं ये जानकर शायद आपको अचरज होगी ... पर यह सच है ...
१. भारत के कितने सरकारी दफ्तरों में आपने हिंदी में ही सारे काम होते हुए देखे हैं ... खासकर जब वो केंद्रीय सरकार से सम्बंधित दफ्तर हो ?
२. केवल हिंदी भाषा में ज्ञान हो और अंगरेजी बिलकुल न आती हो ऐसे किसी इंसान को कितनी अच्छी नौकरी मिल सकती है ? भारत में ?
३. क्या आप यह मानते हैं कि हिंदी में लिखे जा रहे ५०००० ब्लॉग में से हर ब्लॉग बेहतरीन हैं ... ऊँचे स्तर के हैं ... पिछले ३/४ साल से मैं भी हिंदी ब्लॉग्गिंग कर रहा हूँ और ज्यादातर हिंदी ब्लोग्स को मैं कूड़ा करकट के अलावा कुछ नहीं मानता हूँ ... हाँ उसका मतलब यह नहीं कि हिंदी में अच्छे ब्लोग्स नहीं है ... एक से एक बेहतरीन ब्लोग्स हैं ... और उन सब हिंदी ब्लॉगर का मैं कायल हूँ ... उनको श्रधा करता हूँ ...
४. महफूज अली को निजी तौर पे नहीं जानता हूँ ... शायद आप जो कह रहे हैं वो सच है ... लेकिन केवल महफूज ने कहा है इसलिए किसी बात को गलत मान लेना मुझे मंज़ूर नहीं है ...
महफूज़ कहे या ना कहे ... हिंदी भारतीय भाषा होते हुए भी भारत में इस भाषा को वो दर्ज़ा हासिल नहीं है जो अंगरेजी को है ... इसलिए मैंने अपने पोस्ट में जो भी लिखा है उसे मैं सही मानता हूँ और आगे भी मेरा यही राय रहेगी ...
और हाँ ... मेरे ब्लॉग पे टिप्पणी करनी है तो कृपया अपनी पहचान से कीजिये ... यहाँ पर बेनामी टिप्पणियां मुझे पसंद नहीं है ... आगे से बेनामी टिप्पणियां डिलीट कर दी जायेगी ...
अपना मुंह छिपाके किसीके शख्सियत के बारे में निजी राय देना कायरों का काम है ... उससे बेहतर है कि आप साधारण बातें करें ... इस तरह किसीके व्यक्तित्व के बारे में नहीं ...
sagarv,sahjta avam saharsh sweekarya apni matri-bhasha hi hoti hai, english yahdi karya-kshetra k liya anvary samjhi jane lage to Hindi bhasha ko to nagany hi samjh lene walo ki koi kami nahi hai, apni matri bhasha ko hey na samajh apne maan smaan ka dhey banane pr hi yeh gorvanvint ho hogi or Hindi ki garima me hi Bhartiyo ki garima nihit hai.Kitni hi boliya insan sikh jay jab tak use apne matri bahsha nahi aaygi tab tak koi bhasha nahi sikh payga to shuruaat se hi shuru karna nij ki pramanikta hai....or kya khu***
ReplyDeleteक्या आपको लगता है कि भारतीय भाषाओं को तकनीकी क्षेत्र में अधिक प्रयोग किया जाना चाहिए? Telkom University
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