काफी दिनों बाद कोई रचना दे रहा हूँ ब्लॉग में .... एक हलकी फुलकी सी, प्यार भरी कविता प्रस्तुत है आप सबके लिए ... चित्र मेरे अपने एल्बम से है ...
बनके नश्तर तुम
चुभ जाओ दिल में,
बनके ज़ख्म
मैं हँसता रहूँगा ।
नज़रों से भले तुम
गिरा दो मुझको,
दिल में तुम्हारा
मैं बसता रहूँगा ।
करते जाओ तुम
कितना भी सितम,
हर सितम तुम्हारा
मैं सहता रहूँगा ।
मानो न मानो,
मगर हर पल,
मैं हूँ तुम्हारा
यह कहता रहूँगा ।
सूनी सी रातों में
जब तुम अकेली,
बैठोगी यादों के
एल्बम खोलकर ।
तुम्हारी यादों के
आसमान में मैं,
बनके सितारा
चमकता रहूँगा ।
एकदिन अचानक
जब आयेगा पतझड़,
तुम्हारे चमन के
एक कोने में तब भी ...
जैसे एक उम्मीद
की दहकती लौ,
खिलके सुमन मैं
महकता रहूँगा ।
दिल में तुम्हारा
मैं बसता रहूँगा ।
करते जाओ तुम
ReplyDeleteकितना भी सितम,
हर सितम तुम्हारा
मैं सहता रहूँगा ।
मानो न मानो,
मगर हर पल,
मैं हूँ तुम्हारा
यह कहता रहूँगा ।... phir nahi hoga sitam , bahut cool cool rachna
मैं सहता रहूँगा ।
ReplyDeleteमानो न मानो,
मगर हर पल,
मैं हूँ तुम्हारा
यह कहता रहूँगा ।
बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार
यह गुलाब का एक ताज़ा फूल बहुत कुछ कहता है बशर्ते लोग अहसास कर सकें ! शुभकामनायें !
ReplyDeleteबेहतरीन!!!
ReplyDeleteसादर
Waaqayee badee pyaree rachana hai!
ReplyDeleteकरते जाओ तुम
ReplyDeleteकितना भी सितम,
हर सितम तुम्हारा
मैं सहता रहूँगा ।
मानो न मानो,
मगर हर पल,
मैं हूँ तुम्हारा
यह कहता रहूँगा ...
Beautiful !...This is called commitment !
.
करते जाओ तुम
ReplyDeleteकितना भी सितम,
हर सितम तुम्हारा
मैं सहता रहूँगा ।
मानो न मानो,
मगर हर पल,
मैं हूँ तुम्हारा
यह कहता रहूँगा ।
इन्हीं अनुभवों से तो हृदय सबल होता है।
बहुत अच्छी कविता।
सुंदर अहसासों की भावुक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteआमीन इन्द्रनील भाई, इन खूबसूरत अहसासों की तरह दिलों में बसते रहिये हमेशा।
ReplyDeleteसुन्दर और रोमांटिक कविता.. मन को छू गई...
ReplyDeletedosti ki waada aapse nibhaata rahunga....
ReplyDeleteaapke blog pe be-naaga aata rahunnga...
khoobsurat rachna likhi hai sail bhai!
प्रेमपरक सुन्दर रचना. बधाई अच्छी कविता के लिए.
ReplyDeleteआत्म विशवास की अभिव्यक्तिपरक रचना अच्छी है.
ReplyDeleteदिल में बसने का किराया भी देना होगा.
ReplyDeleteआपने शानदार भावों को पिरोकर एक बेहतरीन कविता लिखी है. बधाई
bahut sunder .........
ReplyDeleteबहुत रोचक और सुन्दर रचना .....आभार
ReplyDeleteइस बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकारें...
ReplyDeleteनीरज
सूनी सी रातों में
ReplyDeleteजब तुम अकेली,
बैठोगी यादों के
एल्बम खोलकर ।
तुम्हारी यादों के
आसमान में मैं,
बनके सितारा
चमकता रहूँगा ।
...बहुत भावपूर्ण रचना..हरेक पंक्ति मन को छू जाती है,,
tumara dil meraa aashiyana...waah
ReplyDeleteIs behtrin njm ke liae badhaai ?
ReplyDeleteसुंदर अहसासों की भावुक अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
ReplyDeleteसचमुच भोली सी कविता है ये तो
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना.......
ReplyDeleteकविता का यह अंश बहुत ही संजीदा लेखन का प्रमाण प्रस्तुत करता है....
एकदिन अचानक
जब आयेगा पतझड़,
तुम्हारे चमन के
एक कोने में तब भी ...
जैसे एक उम्मीद
की दहकती लौ,
खिलके सुमन मैं
महकता रहूँगा ।
नाज़ुक कविता.......!!!!! अच्छे भाव हैं.
खिलके सुमन मैं
ReplyDeleteमहकता रहूँगा ।
दिल में तुम्हारा
मैं बसता रहूँगा । -- महकती रचना
yeh to deewangi ki had hai !!
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ख्याल हैं। बधाई।
ReplyDelete---------
देखिए ब्लॉग समीक्षा की बारहवीं कड़ी।
अंधविश्वासी आज भी रत्नों की अंगूठी पहनते हैं।
नमस्कार,
ReplyDeleteअभी तो सिर्फ़ राम-राम,
सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteइतनी भी हल्की फुल्की नहीं है
दिल में तुम्हारा
ReplyDeleteमैं बसता रहूँगा ।
बहुत जबरदस्त दावा पेश किया है.दिल में बसने का, अब समझने वालें समझें तब है बेहतरीन रचना
dil se likhe gaye shabad sach mein dil ko chuu gaye.. bahut hi badiya likha aapne.... jitni taarif ki jaye kam hai.......
ReplyDeletePlease Visit My Blog for Hindi Music, Punjabi Music, English Music, Ghazals, Old Songs, and My Entertainment Blog Where u Can find things like Ghost, Paranormal, Spirits.
Thank You
शुद्ध समर्पण है इन्द्रनील जी, शुभकामनाएँ :)
ReplyDeleteकरते जाओ तुम
कितना भी सितम,
हर सितम तुम्हारा
मैं सहता रहूँगा ।
मानो न मानो,
मगर हर पल,
मैं हूँ तुम्हारा
यह कहता रहूँगा ।
sundar bhav pravan kavita. tera tujhko arpan wala bhav accha laga . google transliteration na chalne ke karan roamn me likhna pada.
ReplyDeleteखिलके सुमन मैं
ReplyDeleteमहकता रहूँगा ।
दिल में तुम्हारा
मैं बसता रहूँगा
मासूम ख्वाहिश! सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति!
अच्छी ही है रचना वर्ना इतने कमेंन्टस कैसे मिलते ?
ReplyDeleteवाह! दिल को छू गयी आपकी ये कविता!
ReplyDelete@ राजे शा
ReplyDeleteकमेंन्टस आये न आये, अब जब खुद आपने अच्छी कह दिया तो अच्छी ही होगी :)
komal sunder ehsaas se bhari -
ReplyDeletesunder rachna ..!!
bahut hi narm se bhaw.....komal-komak si,sunder-sunder si.....
ReplyDeleteइन्द्रनील जी,
ReplyDeleteक्या खूब समर्पण का भाव है आपकी रचना में....
करते जाओ तुम कितना भी सितम,
हर सितम तुम्हारा मैं सहता रहूँगा ।
मानो न मानो, मगर हर पल,
मैं हूँ तुम्हारा, यह कहता रहूँगा ।
वाह - वाह क्या बात है!!!!!!!!!!!!!!!!!