क्रोध एक ऐसी भावना है जो किसीके लिए मानसिक, शारीरिक या सामाजिक रूप से आहत होना, अन्याय का शिकार होना, या फिर किसी अभाव के कारण होने वाली बदले की प्रवृति का मनोवैज्ञानिक व्याख्या है ।
यदि आप पर सचमुच कोई अन्याय हुआ है तो क्रोध लाज़मी है, पर ऐसा नहीं है और आपको केवल ऐसा लग रहा है क्यूंकि आप इस वक्त उत्तेजित मानसिक अवस्था में हो, तो फिर क्रोध गलत है और आपके तथा आपसे जुड़े लोगों को हानि पहुंचा सकता है ।
R. Novaco नामक वैज्ञानिक ने कहा है कि क्रोध के तीन तौर तरीके है - संज्ञानात्मक (मूल्यांकन), भावात्मक-दैहिक (तनाव और आंदोलन) और व्यवहार (वापसी और विरोध) ।
गुस्से में व्यक्ति को आसानी से गलती हो सकती है क्योंकि क्रोध में व्यक्ति स्वयं पे निगरानी रखने की क्षमता और निष्पक्ष निरीक्षण की क्षमता खो देता है । गुस्से में अक्सर हम सही को गलत और गलत को सही समझ बैठते हैं । इसलिए कहा जाता है कि कोई भी निर्णय गुस्से में न लिया जाय । क्यूंकि गुस्से में लिया हुआ कोई भी निर्णय कभी भी सही नहीं होता है ।
तो क्या क्रोध को दबा के रखना चाहिए ? मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि ऐसा बिलकुल नहीं करना चाहिए ।
दरअसल क्रोध सुधारात्मक कार्रवाई के लिए मनोवैज्ञानिक संसाधन जुटा सकता है । लेकिन ये भी ध्यान रखें कि अनियंत्रित क्रोध, व्यक्तिगत या सामाजिक स्तर पे नुक्सान ही करता है ।
संतुलित व्यक्तित्व वो है जिसे यह पता है कि किस वक्त, किस तरह, किस पर, कितना और किस वजह से गुस्सा करना चाहिए ।
भारतीय दर्शन में क्रोध को दुःख और दंभ के साथ जोड़ के देखा गया है । इस में ऐसा समझा जाता है कि किसी कारण जब कोई दुखी हो जाता है तो उसे क्रोध आ सकता है । इस दुःख के कारण अलग अलग हो सकता है । कभी हमें यह लगता है कि हम पर अन्याय हुआ है । कभी हमें वो नहीं मिलता है जो हम चाहते हैं, और इस कारण भी दुःख हो सकता है । अक्सर यह होता है कि हम खुदके बारे में अपने ही मन में बहुत उच्च धारणा बना लेते हैं । इसे दंभ कहते हैं । जब हम दूसरों के व्यवहार से हमारे इस धारणा को ठेस पहुँचते देखते हैं तो हमें दुःख होता है ।
यह अक्सर देखा गया है कि जब कोई क्रोध दिखाता है तो लोग उसकी बात आसानी से मान लेते हैं । धीरे धीरे यह बात उसकी आदत बन जाती है और वह हर बात पे गुस्सा दिखाना शुरू कर देता है । इस बात से अक्सर सामाजिक स्तर पे असमानता बढती जाती है । क्रोधी व्यक्ति व्यक्तिगत संबंधों में भी हमेशा क्रोध को इस्तमाल करके जीतने की कोशिश करते रहता है । इसका नतीजा यह होता है कि संबंधों में खटास आ जाती है ।
यदि आप पर सचमुच कोई अन्याय हुआ है तो क्रोध लाज़मी है, पर ऐसा नहीं है और आपको केवल ऐसा लग रहा है क्यूंकि आप इस वक्त उत्तेजित मानसिक अवस्था में हो, तो फिर क्रोध गलत है और आपके तथा आपसे जुड़े लोगों को हानि पहुंचा सकता है ।
R. Novaco नामक वैज्ञानिक ने कहा है कि क्रोध के तीन तौर तरीके है - संज्ञानात्मक (मूल्यांकन), भावात्मक-दैहिक (तनाव और आंदोलन) और व्यवहार (वापसी और विरोध) ।
गुस्से में व्यक्ति को आसानी से गलती हो सकती है क्योंकि क्रोध में व्यक्ति स्वयं पे निगरानी रखने की क्षमता और निष्पक्ष निरीक्षण की क्षमता खो देता है । गुस्से में अक्सर हम सही को गलत और गलत को सही समझ बैठते हैं । इसलिए कहा जाता है कि कोई भी निर्णय गुस्से में न लिया जाय । क्यूंकि गुस्से में लिया हुआ कोई भी निर्णय कभी भी सही नहीं होता है ।
तो क्या क्रोध को दबा के रखना चाहिए ? मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि ऐसा बिलकुल नहीं करना चाहिए ।
दरअसल क्रोध सुधारात्मक कार्रवाई के लिए मनोवैज्ञानिक संसाधन जुटा सकता है । लेकिन ये भी ध्यान रखें कि अनियंत्रित क्रोध, व्यक्तिगत या सामाजिक स्तर पे नुक्सान ही करता है ।
संतुलित व्यक्तित्व वो है जिसे यह पता है कि किस वक्त, किस तरह, किस पर, कितना और किस वजह से गुस्सा करना चाहिए ।
मनोवैज्ञानिकों के हिसाब से क्रोध तीन प्रकार के होते हैं:
- 18 वीं सदी के अंग्रेजी बिशप जोसेफ बटलर, द्वारा "अचानक क्रोध" नाम से पुकारा गया यह क्रोध आत्मरक्षा के आवेग से जुड़ा हुआ है । यह मानव और पशु दोनों में दीखता है और तब होता है जब वो सताया जाता है या फँस जाता है ।
- क्रोध के दूसरे प्रकार का नाम है "समझकर और जानबूझकर" क्रोध । यह तब होता है जब हमें लगता है कि कोई जानबूझकर और सोच समझकर हमें नुकसान पहुंचा रहा है ।
- क्रोध के तीसरे प्रकार "फितरती" क्रोध और किसी स्वभावतः क्रोधी व्यक्ति के व्यक्तित्व से जुड़ा हुआ होता है । इनके चरित्रगत लक्षण होते हैं चिड़चिड़ापन, हमेशा की नाराजगी और गुस्से । यह अक्सर देखा गया है कि दम्भी व्यक्ति को सहज ही क्रोध आ जाता है । जो खुद को दूसरों से बेहतर समझता है वो आसानी से क्रोधित भी हो जाता है ।
भारतीय दर्शन में क्रोध को दुःख और दंभ के साथ जोड़ के देखा गया है । इस में ऐसा समझा जाता है कि किसी कारण जब कोई दुखी हो जाता है तो उसे क्रोध आ सकता है । इस दुःख के कारण अलग अलग हो सकता है । कभी हमें यह लगता है कि हम पर अन्याय हुआ है । कभी हमें वो नहीं मिलता है जो हम चाहते हैं, और इस कारण भी दुःख हो सकता है । अक्सर यह होता है कि हम खुदके बारे में अपने ही मन में बहुत उच्च धारणा बना लेते हैं । इसे दंभ कहते हैं । जब हम दूसरों के व्यवहार से हमारे इस धारणा को ठेस पहुँचते देखते हैं तो हमें दुःख होता है ।
यह अक्सर देखा गया है कि जब कोई क्रोध दिखाता है तो लोग उसकी बात आसानी से मान लेते हैं । धीरे धीरे यह बात उसकी आदत बन जाती है और वह हर बात पे गुस्सा दिखाना शुरू कर देता है । इस बात से अक्सर सामाजिक स्तर पे असमानता बढती जाती है । क्रोधी व्यक्ति व्यक्तिगत संबंधों में भी हमेशा क्रोध को इस्तमाल करके जीतने की कोशिश करते रहता है । इसका नतीजा यह होता है कि संबंधों में खटास आ जाती है ।
जिसने क्रोध पर विजय पा ली उसने जग जीत लिया।
ReplyDeleteसैल जी, ऐसे पोस्टों की जरुरत होती हैं. अच्छी प्रस्तुति के लिए आप बधाई के हकदार हैं.
ReplyDeleteसुन्दर विश्लेषण !
ReplyDeleteक्रोधी व्यक्ति व्यक्तिगत संबंधों में भी हमेशा क्रोध को इस्तमाल करके जीतने की कोशिश करते रहता है --ये सही लगी बात अजमाई हुई ,सही और सुंदर तरीके से किया गया विश्लेषण
ReplyDeleteमानव स्वभाव पर रोशनी डालती एक सार्थक प्रविष्टि। क्रोध को अल्पकालिक पागलपन भी कहा जाता है। अपने क्रोध पर काबू पाना और क्रोधी व्यक्ति के साथ डील करना दोनोंके लिये ही पर्याप्त धैर्य चाहिये। एक अजीब बात मैंने और महसूस की है, बहुधा लोग उम्र के बढ़ने के साथ क्रोध की मात्रा को जोड़ते हैं, मैंने अलग अलग लोगों के क्रोध पर उम्र का अलग अलग प्रभाव देखा है। कुछ उम्र बढ़ने के साथ और ज्यादा चिड़चिड़े हो जाते हैं और कुछ अपना क्रोध काबू में करना सीख जाते हैं।
ReplyDelete@ संजय जी,
ReplyDeleteजब हर किसीका व्यक्तित्व अलग अलग होता है तो स्वाभाविक है कि उनका व्यवहार और क्रोध का उनपर प्रभाव भी अलग होगा ...
सार्थक विश्लेषण, हर किसी को पढना चाहिए इसे।
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प्रेम रस की तलाश में...।
….कौन ज्यादा खतरनाक है ?
गुस्से में व्यक्ति को आसानी से गलती हो सकती है क्योंकि क्रोध में व्यक्ति स्वयं पे निगरानी रखने की क्षमता और निष्पक्ष निरीक्षण की क्षमता खो देता है । गुस्से में अक्सर हम सही को गलत और गलत को सही समझ बैठते हैं । इसलिए कहा जाता है कि कोई भी निर्णय गुस्से में न लिया जाय । क्यूंकि गुस्से में लिया हुआ कोई भी निर्णय कभी भी सही नहीं होता है
ReplyDeletesolah aane sach kaha .saarthak lekh .
कहते हैं क्रोध में आदमी को कुछ दिखाई नहीं देता !
ReplyDeleteक्रोध करने से सेहत पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है !
जानकारीपूर्ण पोस्ट के लिए धन्यवाद !
मानवीय कमजोरी क्रोध पर सटीक विश्लेषण . क्रोध मनुष्य को विवेक हीन बना देता है .
ReplyDeleteक्रोध पर अच्छा विश्लेषण ...अच्छी पोस्ट
ReplyDeleteक्रोध की आंखें नहीं होतीं, केवल मुंह होता है।
ReplyDeleteअच्छा विश्लेषण।
क्रोध पर विस्तृत चर्चा पढ़ी. क्रोध आना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है.अगर कोई कहे कि उसे क्रोध नहीं आता तो या तो वह झूठ बोल रहा है या डिप्रेशन की गिरफ्त में है. क्रोध में तुरंत प्रतिक्रिया अक्सर नुकसान दायक होती है. परन्तु cool होकर और सही अवसर तलाश कर जवाब दें ज़रूर.इससे जवाब भी सटीक होगा और मन भी अशांत नहीं रहेगा.
ReplyDeleteसुन्दर प्रविष्टि। सम्भव हो तो क्रोध का पोषण-जैव-रासायनिक सम्बन्ध भी बताइये किसी अगली कडी में।
ReplyDeleteसैल भाई,
ReplyDeleteक्रोध तो क्रोध है, चाहे फिर वो किसी भी प्रकार का हो, अंत में निराशा ही हाथ लगती है!
उम्दा लेख प्रकाशित करने के लिए आभार!
Anger is an acid that does more harm to the vessel in which it is stored rather than to the person on whom it is poured.
ReplyDeleteक्रोध का बहुत गहन विश्लेषण..क्रोध वह अग्नी है जिसकी ताप में मनुष्य का विवेक पूरी तरह जल जाता है और वह स्वयं अपना नुक्सान करता है. बहुत सार्थक पोस्ट.
ReplyDeletesarthak lekh. krodh ka itna gahan vishleshan....yad rakhna chaahiye.
ReplyDeleteमानवीय कमजोरी क्रोध पर सटीक विश्लेषण|धन्यवाद|
ReplyDeleteसार्थक विश्लेषण,जानकारीपूर्ण पोस्ट के लिए धन्यवाद !
ReplyDeleteसर सार्थक और सुंदर पोस्ट बधाई और शुभकामनाएं |
ReplyDeleteमानव के मनोविकार क्रोध का सुन्दरता से विश्लेषण किया है आपने.
ReplyDeleteram navmi ki badhai aapko .
ReplyDeletebahut achhi lagi post..thanks
ReplyDeletebahut achhe se krodh par likha hai aapne....
ReplyDeleteमैं भी कई बार यह मह्सून किया है कि खुद को क्रोध आने पर मैंने रोक लिया और फिर कुछ देर बाद उसी बारे में सोचा तो लगा कि अच्छा हुआ कि जो रोक लिया नहीं तो व्यर्थ ही किसी को मेरा क्रोध झेलना पड़ता जिसका उपाय आम वार्तालाप से भी हो सकता था.. क्रोध पर नियंत्रण रखना वाकई में बहुत ज़रूरी है.. अच्छी जानकारी...
ReplyDeleteतीन साल ब्लॉगिंग के पर आपके विचार का इंतज़ार है..
आभार
सुन्दर पोस्ट लिखी
ReplyDeleteबधाई
संतुलित व्यक्तित्व वो है जिसे यह पता है कि किस वक्त, किस तरह, किस पर, कितना और किस वजह से गुस्सा करना चाहिए ।
ReplyDeleteजब इस प्रकार का क्रोध होगा तो वह क्रोध होगा ही नहीं सिर्फ क्रोध का अभिनय होगा ।
वास्तविक क्रोध की झलक आप मेरे ब्लाग नजरिया पर मेरी आने वाले कल की पोस्ट में देखने पधारिएगा ।
@सुशील बाकलीवाल
ReplyDeleteसंतुलित तरीके से क्रोध को अभिव्यक्त करने का मतलब यह नहीं कि वो अभिनय ही हो ... यहाँ बात हो रही है ज़ब्त की ... जैसे कि मैंने कहा है असंतुलित क्रोध एक दुधारी तलवार है जो दोनों को काटता है ...
@Pratik Maheshwari
ReplyDeleteआपने सही कहा ... पर क्रोध पे नियंत्रण रखना आसान नहीं है ... इसके लिए भी अभ्यास चाहिए ...
बुद्ध के अनुसार हमें अपनी साँस पर ध्यान करना चाहिए . मानव-वृतियों पर नियंत्रण पाया जा सकता है ..क्रोध का सुन्दरता से विश्लेषण किया है
ReplyDeleteबहुत खूब !
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
क्रोध के भाव का विविधतापूर्ण विवेचन. बहुत अच्छी पोस्ट.
ReplyDeletehttp://bulletinofblog.blogspot.in/2018/04/blog-post.html
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