हर पल यही उलझन है कि क्या करें .... फिरते रहे जिंदगीभर यूँ ही उलझनों की अंधी गलियों में ... पर कुछ उलझन ऐसी भी होती हैं जो खूबसूरत होती हैं ... और कभी जी करता है कि फिर ये उलझन कभी न सुलझे ...
क्या करें उनसे शिकायत, क्या करें ।
जो है कातिल, वो अदालत, क्या करें ॥
हमने पूछा चाहिए क्या ये बता ।
मांग ली उसने मुहब्बत, क्या करें ॥
राह तकते हो गए आखिर फना ।
आ गया रोज़े क़यामत, क्या करें ॥
है बड़ी कातिल अदा, उनकी कसम ।
मार डालेगी शरारत, क्या करें ॥
वो सदा में सर्द मेहरी, क्या कहूँ ।
उफ़ नज़र की ये हरारत, क्या करें ॥
ज़ख्म सारे ज़र्द दिल में हैं रखे ।
जैसे हुज्जते इनायत, क्या करें ॥
‘सैल’ मैंने देखकर बेहिस् जहां ।
छोड़ दी है अब शराफत, क्या करें ॥
तस्वीर मेरी अपनी ली हुई है ...
bhut hi sundar rachna...badhai
ReplyDeleteबहुत बढिया रचना।
ReplyDeleteइतनी उम्दा गजल पर टिप्पणी क्या करें ...बस पढ़ते रहें
ReplyDeletebahut badhiya gazal ab aur jyada kya kahen .
ReplyDeleteराह तकते हो गए आखिर फना ।
ReplyDeleteआ गया रोज़े क़यामत, क्या करें ॥
अगर ये बात समझ में आ जाये, केवल शब्द और मनोरंजन ही ना हो, तो वास्तविक क्रांति की संभावना बनती है। लेकिन अगर आप कमेंट पाने के लिये तुकें मिला रहे हैं तो वास्तव में रोजे कयामत तक, फना हो जाने तक यही हाल रहने वाला है। तुके मिलाने वाले और कमेंट करने वाले सब____ व्यर्थ ही फना हो जाने वाले हैं। तो अगर मौका हैं, सेहत है सांसे हैं .... तो
वो क्या है
जिसके लिये सब मर मिटते हैं,
जो सबको अजीज रहती है, पता करें
मौत से बेअसर क्या चीज रहती है पता करें
क्या करें उनसे शिकायत, क्या करें ।
ReplyDeleteजो है कातिल, वो अदालत, क्या करें ॥
हमने पूछा चाहिए क्या ये बता ।
मांग ली उसने मुहब्बत, क्या करें ॥
राह तकते हो गए आखिर फना ।
आ गया रोज़े क़यामत, क्या करें ॥
Kya gazab dhaya hai!
Tasveer bhee bahut sundar! Wah!
राह तकते हो गए आखिर फना ।
ReplyDeleteआ गया रोज़े क़यामत, क्या करें ... kya baat hai , bahut hi badhiyaa
‘सैल’ मैंने देखकर बेहिस् जहां ।
ReplyDeleteछोड़ दी है अब शराफत, क्या करें ॥
बेहतरीन!!!
bahut sunder gajal hai.
ReplyDeletemere blog par ane ke liye bahut aabhar.....
हमने पूछा चाहिए क्या ये बता ।
ReplyDeleteमांग ली उसने मुहब्बत, क्या करें ॥
राह तकते हो गए आखिर फना ।
आ गया रोज़े क़यामत, क्या करें ॥
बहुत ही खूबसूरत शब्दों का संगम है इस रचना में ।
है बड़ी कातिल अदा, उनकी कसम ।
ReplyDeleteमार डालेगी शरारत, क्या करें !
आनंद आ गया ....
शुभकामनायें !
एक पुराना गाना था ’शरीफ़ों का जमाने में वो देखा हाल, शराफ़त छोड़ दी मैंने’ आप बेहिस जहां को देखकर शराफ़त छोड़ने की बात कह गये।
ReplyDeleteतारीफ़ के सिवा हम, क्या कहें?
बहुत अच्छा लिखते हैं आप, चाहे गज़ल हो या सामाजिक विषय पर कोई लेख। आभार।
हमने पूछा चाहिए क्या ये बता ।
ReplyDeleteमांग ली उसने मुहब्बत, क्या करें ||
बहुत प्यारा शेर है,वाह वाह.
मैं तो यही कह सकता हूँ कि:-
माँगा भी तो ऐ जालिम क्या मांग लिया तूने,
वल्लाह मुझे अपना दीवाना किया तूने
रहस्यमय दार्शनिक अंदाज में बात कही है.
ReplyDeleteहमने पूछा चाहिए क्या ये बता ।
ReplyDeleteमांग ली उसने मुहब्बत, क्या करें ॥
वाह क्या बात है. बहुत उम्दा ग़ज़ल है. सैल जा आपको बधाई. सभी अशआर सुंदर बन पड़े हैं.
अच्छी ग़ज़ल है इन्द्रनील जी. बधाई.
ReplyDeleteखूबसूरत गज़ल ..
ReplyDeleteहै बड़ी कातिल अदा, उनकी कसम ।
ReplyDeleteमार डालेगी शरारत, क्या करें ॥
Bahut khoob!Shararati panktiyan!
सुन्दर ग़ज़ल !
ReplyDeleteसैल’ मैंने देखकर बेहिस् जहां ।
ReplyDeleteछोड़ दी है अब शराफत, क्या करें ॥
बहुत उम्दा ग़ज़ल -
बधाई
बहुत खूब!
ReplyDeleteबढ़िया है ,बधाई हो ,क्या कहें
ReplyDeleteखुबसुरत गजल। बेहतरीन शेर। अब हम भी इससे ज्यादा क्या कहें।
ReplyDeleteअच्छा लगा पढ़कर .... बेहतरीन ग़ज़ल ...
ReplyDeletebahut achchha laga .bhavpoorn kavita.
ReplyDeleteगज़ल पढ़ते समय शब्दों पर सर्फिंग का मज़ा मिला.
ReplyDeleteअच्छी ग़ज़ल है इन्द्रनील जी. बधाई.
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत शब्दों का संगम है इस रचना में| बधाई|
ReplyDeleteइस ग़ज़ल में गेयता है।
ReplyDeleteबार-बार पढ़ने को मन करता है।
शुभकामनाएं।
क्या करें उनसे शिकायत, क्या करें ।
ReplyDeleteजो है कातिल, वो अदालत, क्या करें ॥
हमने पूछा चाहिए क्या ये बता ।
मांग ली उसने मुहब्बत, क्या करें ॥
राह तकते हो गए आखिर फना ।
आ गया रोज़े क़यामत, क्या करें ॥
mood ko badal dene wali rachna ,laazwaab .
है बड़ी कातिल अदा, उनकी कसम
ReplyDeleteमार डालेगी शरारत, क्या करें ..
बहुत खूब ... नटखट है आपका ये शेर ,...... पूरी ग़ज़ल के क्या कहने .. सुभान अल्ला ...
राह तकते हो गए आखिर फना ।
ReplyDeleteआ गया रोज़े क़यामत, क्या करें ॥
बहुत सुन्दर!
उम्दा ग़ज़ल.
ReplyDeleteहमने पूछा चाहिए क्या ये बता ।
मांग ली उसने मुहब्बत, क्या करें ॥
तारीफ़ न करें ,तो क्या करें..
सलाम
इस गजल के लिये यही कह सकता हूँ । वाह इन्द्रनील जी..कमाल ।
ReplyDeleteनमस्कार इन्द्रनील जी । उत्तर देने में थोङा विलम्ब हो गया । आप कृपया अपनी ब्लाग तालिका में एडिट द्वारा Thumbnail of most recent item पर भी "सही का निशान" लगाकर सेव कर लें । और आइकन वाला बाक्स से हटा दें । तो भी स्थान इतना ही घेरेगा । लेकिन सुन्दरता बङ जायेगी । आपकी मेल आई डी मेरे पास नहीं है । वरना मेल से आपको कोड भेज देता ।
ReplyDeleteराह तकते हो गए आखिर फना ।
ReplyDeleteआ गया रोज़े क़यामत, क्या करें ॥
मन की कशमकश को सुन्दर शब्दों मे सजाया है। बहुत खूब। शुभकामनायें
wah
ReplyDeletekhoobsoorat lafz
ये ग़ज़ल पढ़ने के बाद कमेन्ट
ReplyDeleteकरना है तो बता,क्या करें...
बहुत सुन्दर...
बहुत ही प्यारी गजल कही है आपने। बधाई।
ReplyDelete---------
ब्लॉगवाणी: ब्लॉग समीक्षा का एक विनम्र प्रयास।
वाह! कमाल का कलाम! वाह!
ReplyDeleteराह तकते हो गए आखिर फना ।
ReplyDeleteआ गया रोज़े क़यामत, क्या करें
बहुत उम्दा...
शायद आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर भी हो!
ReplyDeleteसूचनार्थ
धन्यवाद शास्त्रीजी !
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