Indranil Bhattacharjee "सैल"

दुनियादारी से ज्यादा राबता कभी न था !
जज्बात के सहारे ये ज़िन्दगी कर ली तमाम !!

अपनी टिप्पणियां और सुझाव देना न भूलिएगा, एक रचनाकार के लिए ये बहुमूल्य हैं ...

Nov 10, 2024

कठोर सत्य या संवेदनशीलता

इतिहास के हर दौर में दार्शनिकों ने कठोर सत्य और संवेदनशीलता के बीच संतुलन की खोज पर विचार किया है। क्या हमें अरस्तू के अनुसार अपने कार्यों में ऐसा "मध्य मार्ग" खोजना चाहिए जिससे ईमानदारी में शिष्टता का पुट हो? या फिर कन्फ्यूशियस की तरह यह मानना चाहिए कि सत्य को करुणा, दया और आदर के साथ जोड़कर सामाजिक सामंजस्य बनाए रखा जाए?

क्या हम इमैनुएल कांट की बात सुनें, जो कहते हैं कि सत्य से कभी समझौता नहीं करना चाहिए, परंतु उसे ऐसे संदर्भ के साथ प्रस्तुत करें जिससे वह आदर के साथ सुना जाए? या फिर हम जॉन स्टुअर्ट मिल की ओर झुकें, जो स्वतंत्र अभिव्यक्ति और सत्य की खोज का समर्थन करते हैं, पर यह भी मानते हैं कि कठोर और असंवेदनशील शब्द नुकसान पहुंचा सकते हैं?

सिसेला बॉक ने भी इस पर चर्चा की है कि आमतौर पर ईमानदारी सबसे अच्छी नीति है, लेकिन संवेदनशीलता और संदर्भ का महत्व है।

व्यक्तिगत रूप से, मैं मानता हूं कि सबकुछ स्वतंत्र अभिव्यक्ति और दूसरों के दृष्टिकोण के प्रति सहिष्णुता पर निर्भर करता है। सत्य को कहा जाए, परंतु वह सत्य जो मेरे लिए है, वह आपके लिए समान हो यह आवश्यक नहीं। दोनों पक्षों को अपने विचार प्रकट करने की पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए, सभ्य संवाद के दायरे में। समस्या असंवेदनशीलता से नहीं, बल्कि दूसरों के दृष्टिकोण के प्रति असहिष्णुता से उत्पन्न होती है।

हर युद्ध के दो पहलू होते हैं। प्रत्येक पक्ष के अपने नायक और खलनायक होते हैं, अपनी सच्चाई और झूठ होते हैं। वास्तविक स्वतंत्रता होनी चाहिए कि सभी अपनी बात रखें, और पाठक या दर्शक यह निर्णय लें कि सत्य क्या है।

एक फोटोग्राफर का कर्तव्य निर्णय देना नहीं, बल्कि अपने कैमरे से सत्य दिखाना होता है। वास्तविकता को दिखाना, न कि किसी प्रोपेगेंडा के लिए बनाई गई छवि। संदर्भ तो खुद ही स्पष्ट हो जाता है। तस्वीरें ही अपना संदर्भ रचती हैं। 

शेर द्वारा हिरण का शिकार करना सिर्फ एक जीव की हत्या नहीं, बल्कि अपने शावकों के लिए भोजन जुटाना भी है। हर कहानी के दो पहलू होते हैं।

आप को ये भी पसंद आएगा .....

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...