Indranil Bhattacharjee "सैल"

दुनियादारी से ज्यादा राबता कभी न था !
जज्बात के सहारे ये ज़िन्दगी कर ली तमाम !!

अपनी टिप्पणियां और सुझाव देना न भूलिएगा, एक रचनाकार के लिए ये बहुमूल्य हैं ...

May 29, 2011

ग़ज़ल में अब मज़ा है क्या ?

ये चित्र मेरा अपना लिया हुआ है !

आज  फिर आप सबके लिए एक ग़ज़ल प्रस्तुत कर रहा हूँ जो मैंने "मुफायलुन्  मुफायलुन्" बहर में कहने की कोशिश की है ... बताइए ज़रूर कि आपको कैसी लगी मेरी ये कोशिश ...


ये जिंदगी, पता है क्या ?
न खत्म हो, सज़ा है क्या ?

है आँख क्यूँ भरी भरी ?
किसी ने कुछ कहा है क्या ?

दिखाते हो हरेक को
ज़ख़्म अभी हरा है क्या ?

नसीब फिर जला मेरा
कि राख में रखा है क्या ?

है रंग फिर उड़ा उड़ा
मेरी खबर सुना है क्या ?

सज़ा तो मैंने काट ली
बता दे अब खता है क्या

रगड़ लो हाथ लाख तुम
 लिखा है जो मिटा है क्या ?

समझ गया पढ़े बिना
कि खत में वो लिखा है क्या

जो टूटे वो जुड़े नहीं
ज़ख़्म कभी भरा है क्या ?

खुदा है वो पता उसे
कि दिल की अब रज़ा है क्या

ज़रा सा गम मिलाया है
ग़ज़ल में अब मज़ा है क्या ?

समझ सका न “सैल” ये
अजीब सिलसिला है क्या ॥

May 22, 2011

नई दुनिया में एक लघुकथा !

लो जी दुनिया कल शाम छे बजे खतम भी हो गई और हमें पता भी नहीं चला ... वो तो श्रीमती जी ने सुबह सुबह याद दिला दी कि कल दुनिया खतम हो गई थी ... तब बात ध्यान में आई ... बड़ी नाइंसाफी है जी ... इतने सारे दोस्त बना रखे हैं ब्लॉग में किसीने नहीं बताया कि दुनिया खतम होने वाली है, जो करना है अभी कर लो ... वरना करने को तो बहुत कुछ बाकी था ....
खैर अब क्या हो सकता है ... और फिर एक ब्लॉगर को इन बातों से कोई मतलब होना भी नहीं चाहिए ... एक ब्लॉगर किसी सिद्धि प्राप्त महापुरुष से कहाँ कम होता है ... वो तो इन तुच्छ बातों से कब के ऊपर उठ चूका होता है ... दुनिया पुराणी हो या नई, खतम होने जा रही हो या खतम हो चुकी हो ... हम तो जी बस ब्लॉग्गिंग करते रहेंगे ...
लेकिन इस नई दुनिया का थोडा सा ख्याल रखते हुए आज पहली बार एक लघुकथा लिखने की कोशिश की है मैंने ... वही आप सबके सामने प्रस्तुत है ...


रामरतन
दो साल लग गए थे उस भव्य ईमारत को बनने में । किसी बहुत बड़े उद्योगपति का मकान था । ठेकेदार ने पचासों मजदूर लगा दिए थे उस काम के लिए । रामरतन भी उन्ही में से एक था । दिनरात की कड़ी मेहनत के बाद ५० रुपये दिहाड़ी मिला करता था । पर अब तो वो भी बंद हो गया ।
ईमारत बन जाने के बाद उसके पास अब तक कोई काम नहीं था । उसके साथ काम करने वाले मजदूर कहीं न कहीं काम पे लग गए थे । एक ऐसा ही था श्यामलाल । उसे तो उसी ईमारत के रखवाली करने का काम मिल गया था । रामरतन और श्यामलाल हमेशा साथ साथ ही काम करते रहे हैं ।
इसलिए  आज बड़ी उम्मीद के साथ रामरतन उसी ईमारत के गेट पे आया था कि अंदर बैठे साहब से मिलके कुछ अनुरोध करेगा, शायद कुछ बात बन जाय, कुछ काम मिल जाय ।
पर बहुत बड़ा धक्का लगा था, जब उसीका दोस्त श्यामलाल उसे अंदर जाने नहीं दिया । गेट से ही यह कहकर भगा दिया कि साहब किसीसे मिलते नहीं हैं । ज्यादा मिन्नतें करने पर एक धक्का देकर उसे वहाँ से हटा दिया था ।
उस  ईमारत से कुछ दूरी पर एक पेड़ के छांव में बैठके रामरतन सुनी आँखों से क्षितिज की ओर देख रहा था । शायद इस सवाल का जवाब ढूँढ रहा था कि इंसान इतनी जल्दी बदल कैसे जाता है ।

May 17, 2011

भारत में स्थित बौद्ध तीर्थ स्थल !

गौतम बुद्ध के २६०० वीं जयंती पर आप सभी को हार्दिक बधाई तथा शुभकामनायें .... मैंने हाल ही में एक कार्यक्रम में भारत में स्थित बौद्ध तीर्थ स्थलों पर एक व्याख्यान प्रस्तुत किया था ... आज मैं आप सबके लिए उसी को यहाँ ब्लॉग पे पोस्ट कर रहा हूँ .... इसमें मैंने अपनी आवाज़ की जगह कुछ संगीत डाल दिया है .... उम्मीद है आप सबको यह पसंद आयेगा .... ब्लॉगर में अपलोड करने की वजह से विडियो के गुणवत्ता पे असर पडा है ...

May 15, 2011

एक साल - एक सपना - जन्मदिन स्पेशल !

देखते देखते एक और साल गुज़र गया ... व्यस्तताओं से घिरा हुआ, दुखों में डोलता, खुशियों में झूमता, कुछ उदास, कुछ मुस्कुराता, जीवन का एक और टुकड़ा ... और मैंने कहा था पिछले साल के पोस्ट में की शिवम जी के पोस्ट से मुझे यह  पता  चला था की आज के दिन अमर शहीद सुखदेव का भी जन्मदिन है ... तो आज आप सभी  दोस्तों से एक अनुरोध है ... छोटा सा है ... please please please मना मत करियेगा ....
आइये आज हम सब, जब भी हमें समय मिले, केवल एक मिनिट के लिए अपनी आँखें बंद करके भारत माता के उस महान सपूत को याद करलें ... यह हमारी तरफ से भारत माता के लिए स्वाधीनता संग्राम में जान देने वाले उन हजारों वीरों को सम्मान प्रदान करना होगा ...


कल रात एक सपना देखा ... आज आप सबके लिए उसी सपने को मैं अपनी शब्दों में ढालने की कोशिश किया है ...

कल रात देखा 
एक सपना अजीब सा !
दूर किसी गांव में,
हम और तुम,
दोनों मिलके बना रहे थे 
अपने लिए एक छोटा सा झोपड़ा ।
आसपास के जंगल से 
चुनके लाते
सुखी लकड़ी,
और पत्ते,
फिर उनसे बनाते हैं 
दीवार और छत  ...
फिर मिट्टी खोदके,
उसमें पानी मिलाकर,
गीली मिट्टी लगाते हैं 
दीवार पर और
झोपड़े के अंदर 
फर्श लेपते हैं ।
फिर मिट्टी के दीवारों को 
रंगते हैं अपने हाथों से,
सफ़ेद, पीली मिट्टी से 
अपने मन से बनाते हैं 
कुछ आड़ा तिरछा चित्र ।

कितना सुन्दर है वो छोटा सा,
मगर प्यारा सा,
अपना वो "घर" ।

मगर तभी मुझे दिखता है
दूर से आता भयानक तूफ़ान ।
तेज हवा का बवंडर ।
धुल का आसमान छूता अन्धकार ।
सबकुछ उड़ा ले जाने वाला 
प्रचण्ड  झंजावात ।

हम डर जाते हैं ।
ऐसा लगता है कि
इतने प्यार से संजोया हुआ 
ये घर बिखर जायेगा ।
ये जो सबकुछ है 
जाना पहचाना सा,
ये जो हम तिल तिल करके 
प्यार और मेहनत से बनाये हैं,
सब कुछ उड़ा के ले जायेगी 
ये समय की हवा ।

कितना डर, कितना डर !

लेकिन फिर हम दोनों
एक दुसरे को 
पकड़ते हैं अपनी बाहों में ।
कहते हैं एक दुसरे के कान में,
कि अगर बहा ले गई सबकुछ हवा,
फिर भी न हारेंगे हम,
फिर से बनायेंगे 
एक नया घर ।

और जानते हो 
फिर मैंने क्या देखा ?

मैंने देखा कि वो भयानक तूफ़ान 
थम गया अपने आप !
जैसे हारके हमारे प्यार के सामने
चला गया वापस ।

बस ऐसा ही कुछ सपना था 
शायद,
ठीक से याद नहीं है ...

क्या तुमने भी कोई देखा था 
सपना ?

May 11, 2011

उजले कपड़ो में ढका है तन देखो

भारत में तकनिकी विकास के साथ साथ नैतिक और सामाजिक अधःपतन एक विकराल रूप धारण कर चूका है । आदमी जितना शिक्षित होते जा रहा है उसमें उतना ही नैतिक गिरावट परिलक्षित हो रही है । पहले अनपढ़ लोगों में भी व्यवहार कुशलता होती थी, पर आज के ज़माने में उच्च शिक्षित लोगों में भी अहंकार और कुंठा बहुतायत में देखने को मिल रहा है । वहीँ बृहत्तर समाज में भ्रष्टाचार एक भयंकर समस्या के रूप में उभरा है । खासकर राजनैतिक क्षेत्र में अब ईमानदारी लगभग लुप्त हो चुकी है । जिस खादी के दम पर गांधीजी स्वाधीनता का संग्राम लढे थे, वही खादी आज भ्रष्टाचार का प्रतीक बन चूका है सच्चे समाज सेवक भले ही अनशन करते हुए मर जाएँ पर इन भ्रष्ट राजनीतिज्ञों को कोई फर्क नहीं पड़ता है । जिस जनता के वोट से वो सत्ता में आये हुए हैं उसी जनता को लूटने में व्यस्त हैं । इन्ही विचारों से सजी यह ग़ज़ल पेश है आप सबके लिए

उजले कपड़ो में ढका है तन देखो
विष का प्याला भी भरा है मन देखो

कितना शिक्षित हो गया है हर कोई
बस्ती बस्ती बन गया है वन देखो

जिसको पाला था जिगर के टुकड़ों से
उसने है मुझपर उठाया फन देखो

हाथों को जोड़े खड़े हैं नेतागण
खादी में लिपटा है काला धन देखो

भ्रष्टाचारी ना मिटेंगे राष्ट्र से
अनशन करते मिट गया जीवन देखो

May 8, 2011

मैं भी प्यार करता हूँ माँ


अपनी माँ के लिए मेरी बेटी द्वारा बनाई गई कलाकृति (उस पोस्ट पे जाने के लिए यहाँ क्लिक करें)

मैं भी प्यार करता हूँ माँ
नहीं दिखा पाता हूँ
मैं भी करता हूँ परवाह
नहीं बता पाता हूँ

कितने अच्छे थे वो दिन
जब तू लोरी सुनाती थी
अपनी गोदी में बिठाकर
प्यार से खाना खिलाती थी 

तेरी ममता के छांव में 
निश्चिन्त मैं पला बड़ा 
तुने बनाया इस लायक 
हूँ अपने पैरों पर खड़ा

पास तू नहीं है फिर भी 
सर पर तेरा आशीष है
तपते जीवन में तेरी 
स्नेह-ममता की बारिश है

May 2, 2011

देख लो दुनिया वालों, इस तरह लिया जाता है बदला


पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद से दो घंटे के रस्ते पे एक मनोरम जगह आती है, नाम अबोटाबाद यहाँ पाकिस्तानी सेना का एक प्रशिक्षण केंद्र स्थित है कहते हैं कि इस जगह पे ऐसे और भी प्रशिक्षण केंद्र हैं जहाँ दुनिया भर के विभिन्न उग्रवादी और आतंकवादी संगठन के आतंकियों को न केवल प्रशिक्षण प्राप्त होता था, बल्कि उन संगठनों के बड़े बड़े नेताओं को यहाँ पांच सितारा होटल जैसे  आराम में रहने का मौका भी मिलता था यहाँ कई ऐसे मकानों का इंतजाम है/था जहाँ इन इंसानियत की दुश्मनों को पनाह दिया जाता था और जब आतंकवादियों की बात हो तो सबसे पहले जो नाम सामने आता है वो है ओसामा बिन लादेन का दुनिया के लगभग हर देश में आतंक का पर्याय बन चूका वो नाम, CIA के प्रहार सूची (hit list) में, लगभग एक दशक से, सबसे ऊपर था
ओसामा बिन लादेन, सऊदी अरब के एक धनी परिवार में दस मार्च 1957 में पैदा हुआ था वो मोहम्मद बिन लादेन के 52 बच्चों में से 17वें था । मोहम्मद बिन लादेन सऊदी अरब के अरबपति बिल्डर थे जिनकी कंपनी ने देश की लगभग 80 फ़ीसदी सड़कों का निर्माण किया था सिविल इंज़ीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान वो कट्टरपंथी इस्लामी शिक्षकों और छात्रों के संपर्क में आया दिसंबर 1979 में जब सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर हमला किया तो ओसामा ने आरामपरस्त ज़िदंगी को छोड़ मुजाहिदीन के साथ हाथ मिलाया और शस्त्र उठा लिया लादेन, अमरीका पर 9/11 के हमलों के बाद दुनिया भर में चर्चा में आया इसके बाद अमरीका ओसामा को दुश्मन के रूप में देखने लगा और ख़ुफ़िया एजेंसी एफ़बीआई की मोस्ट वॉंटिड लिस्ट में उसे पकड़ने या मारने के लिए 2.5 करोड़ डॉलर के पुरस्कार की घोषणा की गई ओसामा अल कैदा नमक आतंकवादी संगठन का मुखिया था 1979 से लेकर आजतक, इस संगठन के आतंकी, दुनियाभर में न जाने कितने मासूमों की जान ले चुके हैं बिन लादेन और अल कायदा न केवल  9/11 के लिए जिम्मेदार थे बल्कि 1998 में केन्या और तंजानिया में अमेरिकी दूतावासों पर बमबारी भी इन्ही लोगों ने की थी
कई देशों की ख़ुफ़िया तंत्र इस संगठन का मुखिया ओसामा को पकड़ने की कोशिश में दिन रात लगे हुए थे पर कामयाबी हाथ नहीं आ रही थी ओसामा हर बार सबके आँखों में धुल झोंक के भागने में कामयाब हो जाता था कहते हैं उसे पाकिस्तान से सरकारी मदद मिला करती थी वैसे यह बात ऐसा भी नहीं है कि इसपे यकीन करना मुश्किल हो, क्यूंकि आखिर जब उसे मार गिराया गया तो वह पाकिस्तान की उसी जगह पे पाया गया जहाँ का उल्लेख मैं इससे पहले कर चूका हूँ, अबोटाबाद
 
रविवार की रात, ख़ुफ़िया खबर के आधार पर अमरीकी सेना के जवान अबोटाबाद स्थित एक विशाल भवन को चारो तरफ से घेर लिए कुछ जवान हेलिकोप्टर पे सवार भवन को ऊपर से निगरानी कर रहे थे उनको खबर थी कि ओसामा इसी भवन में कहीं छिपा हुआ है उस भवन तक जाने वाले रास्तों पर पुलिस पहरा बिठा दिया गया था ताकि कोई भाग न सके अचानक उस भवन से हेलिकोप्टर पर गोलीबारी शुरू हो गई इस गोलीबारी से एक हेलिकोप्टर नीचे गिर गया फिर अमरीकी जवान उस भवन पर आक्रमण कर दिए जिससे 40  मिनिट के घमासान लढाई के बाद अपने एक पुत्र समेत ओसामा बिन लादेन की मृत्यु हो गई उसे सर पर गोली लगी थी
यह तो हो गई खबर की बात अब मैं अपनी बात करता हूँ हो सकता है इसी आक्रमण में ओसामा को मार दिया गया हो यह भी मुमकिन है कि उसे बहुत पहले ही मार दिया गया हो पर खबर अब बाहर निकली है  

खैर हकीकत यह है कि इस इंसानियत के दुश्मन को मार गिराया गया है और सच कहता हूँ, मुझे भारत के क्रिकेट विश्वकप जीतने से जितनी खुशी हुई थी, या फिर श्री अन्ना हजारे की जीत से, उससे कहीं ज्यादा खुशी आज हो रही है हजारों लाखों बेक़सूर, मासूम इंसान की जिंदगी लेने वाला इस जानवर को मार गिराने के लिए मैं अमेरिकी सरकार को बधाई देता हूँ बल्कि मैं तो कहता हूँ कि आज के बाद मई की पहली तारीख को labour day के साथ साथ “इंसानियत दिवस” (Humanity Day) के नाम से विश्वभर में मनाया जाना चाहिए
 
पर इस खुशी के साथ कहीं न कहीं मेरे मन में एक दुःख भी है
 
9/11 के हमले का बदला तो अमरीकी सरकार पाकिस्तान के घर में घुसकर ले ली है उसके लिए उसे मेरा सलाम पर 26/11 का मुंबई आक्रमण का बदला हमारा देश कब लेगा ? अमरीकी नागरिकों की जान की कीमत है, क्या भारतीय नागरिकों की जान की कोई कीमत नहीं है ? क्या उन 150 मासूम  लोगों की जान व्यर्थ गई ? अमरीका में ये दम है कि वह पाकिस्तान में घुसकर बदला ले श्री लंका जैसे छोटे देश में यह दम है कि वह अपने सरज़मीं से LTTE को पूरी तरह खतम कर दे फिर हमारा देश तो एक परमाणु शक्ति सम्पन्न देश है हमारे देश की सरकार इस तरह हाथों पे हाथ रखे कब तक बैठी रहेगी ? कब तक हम न्याय को तरसते रहेंगे ? हमारी सरकार को अपने देश के नागरिकों की जान की परवाह नहीं है क्या ? 
दिन दहाड़े दुसरे देश के आतंकवादी हमारे देश में घुसके बेक़सूर लोगों की जान ले सकते हैं, पर हम इतनी बड़ी वारदात के बाद भी उनसे केवल सबूत की भीख मांगते रह जायेंगे ! क्या इसीलिए हम इन नेताओं को चुनके, देश का शासन इनके हाथों में सौंपे हैं ? क्या हम इतने गए गुजरे हैं ? 
दुःख इस बात की है कि ऐसे हर सवाल का जवाब में मुझे मेरे अंतर्मन से केवल “हाँ” मिलता है ।

आज़ादी के 60 साल बाद भी हमारे अंदर इतनी काबिलियत नहीं आई कि हम अपने देश, राज्य या गांव/शहर के लिए सही नेता/जनसेवक का चुनाव कर सकें । हम आज भी दकियानुसी विचारों के, जात-पात के, धर्म-मज़हब के और प्रांतीयता के एक ऐसे अंधे कुएं में जी रहे हैं कि हमें सही रास्ता दिखाई नहीं देता । हमारे हाथ में वोट का अधिकार है, पर 60 सालों में भी हमें इस अधिकार का सही इस्तमाल करना आया नहीं । दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि दरअसल भारत और इसके नागरिक गणतंत्र के काबिल नहीं हैं ।
 


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